श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर: भक्तों के बीच ‘दक्षिण की अयोध्या’ के नाम से प्रसिद्ध
अयोध्या प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि है परंतु श्रीराम का नाम और उनकी ख्याति तो पूरे संसार में गुंजायमान है। दक्षिण भारत के भद्राचलम को यूं तो मंदिरों की नगरी कहा जाता है लेकिन प्रभु श्रीराम को भक्तों के बीच ये स्थान दक्षिण की अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का एक ऐसा मंदिर है जिसकी महिमा रामायण काल से जुड़ी मिलती है।
इस मंदिर का नाम है श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर। ये अद्भुत मंदिर प्रभु श्रीराम और उनकी पत्नी देवी सीता को समर्पित है। ये विश्व का संभवतः एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ-साथ भरत और शत्रुघ्न भी विराजमान है। इस मंदिर में भगवान श्रीराम के साथ बजरंग बली भी विराजमान हैं।
मंदिरों के शहर के नाम से प्रसिद्ध है भद्राचलम
तेलंगाना राज्य का खम्मम और वहां गोदावरी नदी के किनारे बसा सुंदर सा शहर भद्राचलम। मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान पर वैसे तो कई मंदिर है लेकिन प्रभु श्रीराम और माता सीता को समर्पित श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर की बात ही निराली है। आमतौर पर इस मंदिर में प्रत्येक दिन 5 हजार से ज्यादा श्रद्धालु प्रभु श्रीराम के दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि अपने भक्त ऋषि भद्र को आशीर्वाद देने के लिए भगवान श्रीराम स्वंय स्वर्ग से उतरकर यहां आए थे। उन्होंने भक्त भद्र को ये भरोसा दिया था कि अब वे अपने भक्तों के बीच यहीं विराजमान रहेंगे। यही कारण है कि इस स्थान का नाम भद्राचलम पड़ गया।
रावण ने यहीं किया था माता सीता का अपहरण
पवित्र नगरी भद्राचलम में स्थित श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर पर्णशाला गांव से केवल 32 किलोमीटर दूर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पर्णशाला वही स्थान है जहां प्रभु श्रीराम ने अपने 14 वर्षों के वनवास का कुछ समय व्यतीत किया था। पर्णशाला यानी स्वर्ण मृग से जुड़ा वह स्थान जहां से लंकापति रावण ने माता सीता का अपहरण किया था। प्रभु श्रीराम ने यहां अपने परिवार के लिए एक निवास स्थान भी बनाया था। माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान से माता सीता का अपहरण किया था और उन्हें लंका ले गया था। मान्यता ये भी है कि जब भगवान राम, देवी सीता को वापस लाने के लिए लंका जा रहे थे तो इसी स्थान के समीप उन्होंने गोदावरी नदी को पार किया था। आज इस स्थान पर आने वाले भक्तों और सैलानियों को दिखाने के लिए पर्णशाला में देवी सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं। इसके अलावा स्वर्ण मृग बनकर आए मारीछ और भीक्षाटन के लिए संन्यासी का भेष धरकर आए रावण की तस्वीरें भी मौजूद हैं।
मंदिर निर्माण से जुड़ी रोचक कथा
ये तो हम सब जानते हैं कि वनवासियों की प्रभु श्रीराम में गहरी आस्था रही है। भद्राचलम के श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर के निर्माण की कथा भी एक वनवासी से ही जुड़ी है। इस कथा के अनुसार यहां दम्मक्का नाम की एक वनवासी महिला निवास करती थी जो श्रीराम की भक्त थीं। उन्होंने राम नाम के एक बालक को गोद लिया था। एक दिन उस महिला का पुत्र राम वन में जाता है और लंबे समय तक वापस नहीं लौटता है। दम्मक्का उसे ढूंढते हुए वन में जाती है और राम-राम पुकारती है। तभी उसे एक गुफा से ध्वनि सुनाई देती है – “मां, मैं यहां हूं”। दम्मक्का जब गुफा में प्रवेश करती है तो कुछ देखकर भाव विभोर हो जाती हैं। असल में उस स्थान पर प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी की मूर्तियां विराजमान थीं। दम्मक्का का पुत्र भी वहीं खड़ा था। भक्ति से सराबोर दम्मक्का ने उसी क्षण देव प्रतिमाओं की स्थापना का प्रण लिया और बांस का छत तैयार करके उस स्थान पर एक अस्थाई मंदिर बना दिया। समय के साथ-साथ वहां के स्थानीय वनवासी प्रभु श्रीराम की पूजा-अर्चना के लिए उस मंदिर में जाने लगे।
कालांतर में यानी 17वीं शताब्दी में भद्राचलम के तहसीलदार कंचली गोपन्ना ने बांस के उस अस्थाई मंदिर को भव्य राम मंदिर में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने उस स्थान पर भव्य राम मंदिर बनवाकर इस क्षेत्र को प्रभु श्रीराम की आस्था के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया। कंचली गोपन्ना ने भक्ति भाव से समर्पित होकर प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के लिए माला, कंठमाला और मुकुट मणि भी बनवाकर उन्हें अर्पित कर दिया। भगवान राम की भक्ति में उन्होंने कई भजन भी लिखे। इस कारण वहां के लोग उन्हों रामदास कहने लगे।
श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर में अन्य देवी देवताओं की भी मूर्तियां विराजमान हैं जहां सालों भर भगवान राम के भक्तों का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचे श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर
सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर भद्राचलम शहर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां तक भद्राचलम पहुंचने का सवाल है तो यह स्थान तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से 312 किलोमीटर दूर है। विजयवाड़ा से 182 किलोमीटर और खम्मम से 115 किलोमीटर की दूरी तय करके भी भद्राचलम तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भद्राचलम रोड है जो तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम जिले में स्थित है।