राम राजा मंदिर: भगवान और राजा, दोनों ही रूपों में पूजे जाते हैं श्रीराम, पुलिस देती है ‘गार्ड ऑफ ऑनर’
भारत के प्रतीक पुरुषों में सबसे ऊपर आता है प्रभु श्रीराम का नाम जिनकी महिमा अपरंपार है। जिस प्रकार अयोध्या के कण-कण में श्रीराम बसते हैं ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी प्रभु राम ही विराजमान हैं। ओरछा मध्य प्रदेश का एक तहसील है जहां श्रीराम का एक ऐसा अनोखा मंदिर है जिसकी ख्याति दूर-दूर तक सुनाई देती है। प्रभु के अन्य मंदिरों की तुलना में ये मंदिर सबसे अलग है क्योंकि यहां राम केवल भगवान नहीं बल्कि ओरछा राज्य के राजा के रूप में भी पूजे जाते हैं। ओरछा में आज भी श्रीराम का ही शासन चलता है। सशस्त्र बलों द्वारा उन्हें ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने की परंपरा आज भी निभाई जा रही है। यही वजह है कि इस मंदिर को राम राजा मंदिर कहा जाता है।
600 वर्ष पुराना है अयोध्या से ओरछा का नाता
मान्यता है कि अयोध्या के रामलला का वास्तविक विग्रह ओरछा में ही विराजमान है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में बुंदेलखंड (ओरछा) के शासक रहे मधुकरशाह की पत्नी महारानी कुंवरि गणेश प्रभु श्रीराम की परम भक्त थीं। उन्होंने अपने पति की चुनौती को स्वीकार किया था और उसी के फलस्वरूप रामलला को अयोध्या से ओरछा लेकर आईं थीं।
ओरछा में राम राजा मंदिर का इतिहास
प्राचीन कथाओं के अनुसार बुन्देल शासक मधुकर शाह जिन्होंने ओरछा पर 1554 से 1592 तक शासन किया था, वो एक कृष्ण भक्त थे। उनकी पत्नी महारानी कुंवरि गणेश भगवान श्रीराम की परम भक्त थीं। एक दिन महाराज मधुकर शाह ने उनसे भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए वृंदावन चलने का आग्रह किया। महारानी की आस्था प्रभु श्रीराम में थी इसलिए उन्होंने महाराज को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया और महाराज से अयोध्या चलने की जिद करने लगीं। ये बात महाराज मधुकर को पसंद नहीं आई। उन्होंने महारानी पर व्यंग्य करते हुए कहा कि अगर आप श्रीराम की इतनी ही बड़ी भक्त हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा क्यों नहीं ले आतीं। महारानी ने तत्क्षण ही महाराज की चुनौती को स्वीकार कर लिया और अयोध्या के लिए निकल पड़ीं।
महारानी की जिद के आगे झुके श्रीराम
मान्यता है कि महारानी ने अयोध्या में सरयू नदी के किनारे ही अपनी एक कुटिया बनाई और तपस्या करने लगी। कई दिनों की तपस्या के बाद भी जब उन्हें भगवान राम की ओर से कोई संकेत नहीं मिला तो महारानी निराश हो गईं। उन्होंने आत्महत्या की मंशा से सरयू नदी में छलांग लगा दी। कहा जाता कि नदी में छलांग लगाते ही भगवान राम महारानी की गोद में आ गए और उन्हें दर्शन देकर उनकी जान बचा ली। महारानी ने भगवान राम से ओरछा चलने की विनती की जिसे प्रभु ने कुछ शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया और उन्हें अपनी मूर्ति सौंप दी। उनकी शर्त थी कि अयोध्या से ओरछा की यात्रा केवल पुष्य नक्षत्र में ही की जाएगी वो भी पैदल। एक और शर्त ये थी कि भगवान राम जहां विरजमान हो जाएंगे, फिर वहां से हटेंगे नहीं। प्रभु श्रीराम ने एक शर्त ये भी रखी थी कि जहां भी मेरी स्थापना की जाएगी, उस नगर में किसी और का नहीं बल्कि सिर्फ मेरा ही राज चलेगा। महारानी ने प्रभु श्रीराम की सभी शर्तें स्वीकार कर ली और महाराज मधुकर को संदेशा भेज दिया कि वो भगवान राम को अपने साथ लेकर ओरछा लौट रही हैं।
ओरछा में राम राज्य की कहानी
महारानी के लौटने का संदेश सुनकर महाराज मधुकर शाह ने श्रीराम की मूर्ति की स्थापना के लिए एक भव्य चतुर्भुज मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया। उधर पुष्य नक्षत्र में ही यात्रा करने के कारण महारानी को अयोध्या से ओरछा तक की साढ़े चार सौ किलोमीटर की दूरी तय करने में 8 महीने 27 दिन का समय लग गया। महारानी जब प्रभु श्रीराम को लेकर ओरछा पहुंची, तब तक मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया था। महारानी ने प्रभु की मूर्ति को अपने महल की रसोई में विराजमान कर दिया। महारानी का ध्येय था कि ऐसा करने से वो अधिक से अधिक समय तक प्रभु श्रीराम के दर्शन कर पाएंगी। कुछ समय बाद मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया जिसके बाद जब मूर्ति को महल से मंदिर में स्थापित करने के लिए उठाया गया तो कई प्रयासों के बाद भी ऐसा संभव ना हो सका। महाराजा और महारानी ने इसे प्रभु श्रीराम का चमत्कार माना और तब महाराज मधुकर ने अपने उस महल को ही भगवान राम के मंदिर के रूप में बदल दिया। उस दिन के बाद से महाराज मधुकर शाह ने ओरछा का राजपाट प्रभु श्रीराम को सौंप दिया और खुद टीमकगढ़ चले गए। उसी समय से प्रभु राम ओरछा के राजा है और राम राजा कहलाते हैं।
कहा जाता है कि 16वीं सदी में जब विदेशी आक्रांता मंदिरों पर आक्रमण कर रहे थे और मूर्तियों को खंडित कर रहे थे तब अयोध्या के संतों ने श्रीराम जन्मभूमि में विराजमान रामलला के विग्रह को जल समाधि देकर बालू के ढेर में दबा दिया था। मान्यता है कि यही वो मूर्ति थी जो सरयू नदी में महारानी कुंवरि गणेश को मिली थी जिसे वो ओरछा लेकर आई थीं।
सुबह शाम बंदूकों से दी जाती है सलामी
राम राजा मंदिर संभवतः संसार का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सुबह शाम बंदूकों से सलामी दी जाती है। मध्य प्रदेश पुलिस के जवान प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय राजा राम को गार्ड ऑफ ऑनर देते हैं और ये परंपरा आज भी निरंतर चली आ रही है। माना जाता है कि ओरछा में कोई भी वीवीआईपी नहीं है, ना तो मुख्यमंत्री, ना प्रधानमंत्री और ना ही राष्ट्रपति। अगर कोई वीवीआईपी है तो वो केवल राजा राम ही हैं। ओरछा में राम राजा का ये मंदिर बुंदेल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है जहां भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ विराजमान हैं।
कैसे पहुंचे राम राजा मंदिर
ओरछा का राम राजा मंदिर झांसी-खजुराहो सड़क मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आप झांसी या खजुराहों से बस सेवा का उपयोग कर सकते हैं। ओरछा तक पहुंचने के लिए झांसी सबसे नजदीकी रेल मुख्यालय है। झांसी रेलवे स्टेशन से ओरछा के लिए कई पैसेंजर ट्रेनें उपलब्ध हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश के कई दूसरे शहरों से भी ओरछा तक पहुंचने के लिए परिवहन के कई साधन उपलब्ध हैं। ओरछा से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जहां से मंदिर की दूरी लगभग 163 किलोमीटर है।