सनातन धर्म में नृसिंह जयंती का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण में भी भगवान विष्णु की उस कथा का वर्णन आता है। जिसमें उन्होंने भगवान नृसिंह के रूप में अपना चौथा अवतार लिया था। अपने भक्त प्रहलाद के लिए भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में प्रकट हुए थे। इसी दिन को नृसिंह जयंती के रूप में पुरातन काल से मनाया जाता रहा है। आपको बता दें कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। वर्तमान समय में उपयोग किये जाने वाले कैलेंडर के अनुसार यह अप्रैल तथा मई माह के मध्य में आती है।
नृसिंह जयंती का शुभ मुहूर्त तथा तिथि
इस वर्ष नृसिंह जयंती गुरूवार 4 मई को मनाई जाएगी। बता दें कि इस दिन चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 3 मई 2023 को रात्रि 11.50 पर होगा। चतुर्दशी तिथि का समापन 4 मई 2023 को रात्रि 11.30 पर होगा। इस पर्व पर पूजन का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल 10 बजकर 58 मिनट से दोपहर 1 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। संध्या काल की पूजा का शुभ मुहूर्त सायंकाल में 4 बजकर 18 मिनट से सायंकाल में 6 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
नृसिंह जयंती पर्व का महत्व
भगवान विष्णु के सभी अवतारों में नृसिंह अवतार को सबसे अधिक उग्र माना जाता है। भगवान विष्णु ने यह अवतार हिरण्यकश्यप के वध के लिए लिया था। भगवान विष्णु की भक्ति के कारण ही भक्त प्रहलाद को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई थी। भगवान नृसिंह के पूजन से भक्तों को मानसिक तथा शारीरिक बल की प्राप्ति होती है। भगवान नृसिंह का ध्यान करने से भक्तों का भय क्षण भर में दूर हो जाता है तथा उनके शत्रुओं का भी नाश हो जाता है। नृसिंह जयंती पर भगवान के इस रूप का पूजन करने से जीवन में आ रहीं सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं तथा भगवत कृपा की प्राप्ति होती है।
नृसिंह जयंती पर्व की पूजन विधि
इस दिन भक्त सभी प्रकार के अनुष्ठानों का पालन करते हुए विधि विधान से पूजन करते हैं। बहुत से श्रद्धालू पंडित के साथ में इस पूजन को कराते हैं। नृसिंह जयंती पर्व पर पूजन करने के लिए भक्त को प्रातःकाल जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके उपरांत पूजन स्थल को भी स्वच्छ कर गंगाजल से पवित्र कर लेना चाहिए। इसके बाद पूजन स्थल पर भगवान नृसिंह तथा देवी लक्ष्मी की प्रतिमाओं को स्थापित करें। अब भक्त लाल कपड़े में नारियल को लपेट कर भगवान नृसिंह को समर्पित करे तथा उनको मिठाई, फल, केसर तथा दूध का भोग लगाए। इसके बाद नृसिंह स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद भगवान नृसिंह तथा देवी लक्ष्मी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें तथा भगवान नृसिंह के मूल मंत्र की 11 मालाएं अवश्य करें। अंत में आरती करें तथा उसके उपरांत क्षमा प्रार्थना कर सभी भक्तों को प्रसाद बांट दें। ध्यान दें कि भगवान नृसिंह के व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता है। सायंकाल के पूजन के उपरांत तिल, भोजन तथा वस्त्रों का दान अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है। इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
भगवान नृसिंहं के लिए प्रार्थना
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ।।
अर्थ – हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।
नृसिंहं जयंती पर्व की कथा
भगवान नृसिंहं की जो पौराणिक कथा मिलती है। उसके अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम दिति था। राजा के दो पुत्र उत्पन्न हुए। जिनके नाम उसने क्रमशः हिरण्यकश्यप तथा हरिण्याक्ष रखें। हरिण्याक्ष के अत्याचारों से भक्तों को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने उसका वध कर दिया था। उसी समय से हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मान बैठा। उसने अमरता की कामना से कठोर तप किया तथा भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। लेकिन ब्रह्मा जी ने उसको अमरता का वरदान देने में असमर्थता व्यक्त की तो उसने एक विशेष वर मांग लिया। जिसके बाद ब्रह्मा जी तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए।
इस विशेष वरदान के मिलने के बाद में हिरण्यकश्यप खुद को अमर मानने लगा तथा भगवान श्री हरि का पूजन करने वाले भक्तों पर अत्याचार करने लगा। कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया। जिसका नाम उसने प्रहलाद रखा। प्रहलाद प्रारंभ से ही भगवान श्री हरि का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने इसी कारण अपने ही बेटे को मारने का कई बार प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा। इसी क्रम में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी जलकर मृत्यु को प्राप्त हो गई।
अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान का अस्तित्व सिद्ध करने की चुनौती दे दी। तब प्रहलाद ने कहा कि वे तो प्रत्येक स्थान पर हैं। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने एक स्तंभ की ओर इशारा करते हुए पूछा कि क्या तुम्हारे श्री हरि इस स्तंभ में भी हैं। प्रहलाद ने कहा – जी, पिताजी। इसके बाद क्रोध में आकर हिरण्यकश्यप ने उस स्तंभ को तोड़ दिया। उसी समय भगवान विष्णु भगवान नृसिंहं के अवतार में उस स्तंभ से प्रकट हुए। इसके उपरांत भगवान ब्रह्मा जी के वरदान को ध्यान में रखते हुए भगवान नृसिंहं ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था। इसी दिन को भगवान नृसिंहं जयंती के रूप में मनाया जाता है।
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