भद्रकाली जयंती 2023 : यहां जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि तथा कथा के बारे में - Ramrajya Trust

भद्रकाली जयंती का पर्व इस वर्ष सोमवार 15 मई को है। भद्रकाली को देवी पार्वती का सबसे उग्र तथा शक्तिशाली रूप माना जाता है। भद्रकाली शब्द में भद्रा का अर्थ सौभाग्य तथा समृद्धि से परिपूर्ण होता है। भद्रकाली देवी पार्वती का सबसे प्रसिद्ध रूप है। जिसको राजपूत राजाओं द्वारा लड़ाई में जाने से पहले पूजा जाता था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार भद्रकाली जयंती का पर्व ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के 11 वें दिन मनाया जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती की मृत्यु के पश्चात इसी दिन देवी भद्रकाली भगवान शिव के बालों से उत्पन्न हुई थीं। आर्यन सारस्वत ब्राह्मण लोग भद्रकाली जयंती को विशेष पर्व में रूप में प्राचीन काल से मनाते चले आ रहें हैं। आपको बता दें कि भद्रकाली जयंती का पर्व हरियाणा, कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में अत्यंत हर्ष के साथ मनाया जाता है।

भद्रकाली जयंती का महत्व

देवी भद्रकाली की महिला का उल्लेख निलयम पुराण में किया गया है।  इसको ‘वितस्ता महात्म्य” भी कहा जाता है। भद्रकाली जयंती के दिन देवी का पूजन करने से भक्त के सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन पूजन करने से ग्रह तथा कुंडली के दोषो को भी दूर किया जा सकता है। भद्रकाली जयंती को कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। हमारे देश के कुछ राज्यों में भद्रकाली जयंती को भद्रकाली एकादशी के नाम से भी मनाया जाता है। झारखंड, केरल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल में देवी भद्रकाली के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं।

देवी भद्रकाली की पूजन विधि

देवी भद्रकाली जयंती पर भक्त लोग भक्ति भाव से देवी पूजन करते हैं। इस दिन पूजन के लिए भक्त प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि कर देवी का पूजन करते हैं। इस दिन देवी पूजन में भक्त को काले वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके अलावा आप नीले  वस्त्रों को भी धारण कर सकते हैं। पूजन के लिए आपको पूजन कक्ष में उत्तर दिशा में मुंह करके बैठना होता है।

इसके बाद आप पने सामने पूजा की चौकी लगा लें। चौकी पर नीले रंग का वस्त्र बिछा लें तथा उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा को रख लें। अब आप दूध, चीनी, शहद तथा घी से देवी मां का अभिषेक करें। भद्रकाली जयंती पर देवी मां का अभिषेक नारियल पानी से करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। अभिषेक करने के उपरांत आप देवी मां को कुमकुम लगाएं। इसके बाद देवी भद्रकाली का ध्यान कर दुर्गा कवच, दुर्गा चालीसा तथा आरती करें। इस दिन संध्या काल में मंदिर में जाकर देवी मां को प्रसाद अर्पित करें।

देवी भद्रकाली जयंती की कथा

देवी भद्रकाली को देवी पार्वती का ही रूप माना जाता है। जो की अपने रूद्र रूप में भगवान शिव की धर्म पत्नी हैं। देवी भद्रकाली की कथा का वर्णन महाभारत तथा वायु पुराण में किया गया है। कथा के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने अश्वमेघ यज्ञ किया था तथा भगवान शिव का अपमान किया था तब देवी सती यज्ञ कुंड में कूद गई थी। जिसके उपरांत उन्होंने देवी भद्रकाली का रूप धारण कर लिया था। भगवान शिव इस घटना को सहन नहीं कर पाए अतः उन्होंने वीरभद्र का रूप धारण किया था।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में डारिका नामक राक्षसी ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर उनसे वरदान प्राप्त किया था। वरदान के अनुसार उसको किसी भी प्रकार से नहीं मारा जा सकता था। वरदान के बाद में उस राक्षसी ने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया। इस बारे में जब भगवान शिव को पता लगा तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला। जिसमें से देवी भद्रकाली का अवतरण हुआ। भगवान शिव ने देवी भद्रकाली का आवाहन कर उनको डारिका को मारने तथा विश्व में शांति लाभ के लिए भेजा था। इस प्रकार से ये दोनों कथाएं देवी भद्रकाली के अवतरण के रूप में प्राप्त होती हैं।

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