वेद : उत्पत्ति, इतिहास तथा आतंरिक मूल विषय | What are the 4 Vedas about?
राजऋषि मनु के अनुसार “वेद शब्द विद मूल शब्द से निर्मित हुआ है। विद शब्द का अर्थ है ज्ञान अर्थात वेद ही वास्तविक ज्ञान है। कहा भी गया है कि “वेदो अखिलो धर्म मूलम” अर्थात वेद ही धर्म का मूल है। अब प्रश्न वेदों की प्राचीनता पर उठता है। बता दें कि सनातन धर्म के दर्शन के अनुसार वेदों की उत्पत्ति आदि सृष्टि काल में हुई थी। वेदों के अनुसार वर्तमान सृष्टि की उत्पत्ति को 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख तथा लगभग 53 हजार वर्ष हो चुके हैं अर्थात यह कहा जा सकता है कि वेद भी इतने ही प्राचीन हैं। यहां भी ध्यान देना उचित होगा कि वेद सिर्फ इतने प्राचीन ही नहीं हैं बल्कि वेद शाश्वत हैं। इसका प्रमाण ऋग्वेद के 10/119/3 मंत्र में ईश्वर ने दिया है। मंत्र में कहा गया है कि यह सृष्टि, इससे पिछली सृष्टि के सामान है तथा सृष्टि चलने के क्रम शाश्वत है। यहीं से यह प्रमाणित होता है कि वेद भी शाश्वत हैं।
चार महान ऋषि, जिनमें प्रकाशित हुए वेद
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने कहा है कि “वेदों का कभी सृजन या विनाश नहीं होता बल्कि वे सिर्फ प्रकाशित या अप्रकाशित होते हैं परंतु ईश्वर में सदैव रहते हैं।” दूसरी ओर कुमारील भट्ट ने वेदों को “अपौरुषय” का सम्बोधन दिया है। वेद वास्तव में पुस्तकें मात्र नहीं हैं बल्कि यह वह ज्ञान है। जो सृष्टि के आदि काल में ईश्वर ने चार ऋषिओं के ह्रदय में प्रकाशित किया था। वैदिक दर्शन के अनुसार ये चार महान ऋषि जैविक सृष्टि से उत्पन्न नहीं हुए थे। इस प्रकार से यह ज्ञात होता है कि वेद वास्तव में ईश्वर की वाणी हैं। चार महान ऋषि तथा उनको मिले वेद ज्ञान के बारे में निम्न स्थान पर बताया गया है।
1 . ऋषि अग्नि ने ऋग्वेद को प्राप्त किया।
2 . ऋषि वायु ने यजुर्वेद को प्राप्त किया।
3 . ऋषि आदित्य ने सामवेद को प्राप्त किया।
4 . ऋषि अंगिरा ने अथर्व वेद को प्राप्त किया।
इसके बाद इन महान ऋषियों ने वेद की ईश्वरीय वाणी को अन्य सभी लोगों तक पहुंचाया। इस प्रकार से वैदिक ज्ञान संसार भर में पहुंचा।
वेद की संरचना
आपको बता दें कि प्रत्येक वेद के चार भाग होते हैं। जो क्रमशः सहिंता, ब्राह्मण, उपनिषद तथा आरण्यक कहलाते हैं। सहिंता में ऋचाओं तथा मंत्रों का संग्रहण है। नियत कर्मों तथा कर्तव्यों का बोध देने वाला ग्रंथ ब्राह्मण कहलाता है। इसके अलावा दार्शनिक पक्ष से आरण्यक तथा ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषद का निर्माण हुआ है। उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है। ये वैदिक ज्ञान का आधार हैं।
चार वेद तथा उनके संबंध में संक्षिप्त जानकारी
1 . ऋग्वेद
यह सभी वेदों में सबसे प्राचीन है। ऋग तथा वेद नामक दो शब्दों ने इसको “स्तुति तथा ज्ञान” के रूप में अनुवादित किया है। इसमें आपको 1,028 भजनों और 10,600 छंदों का संग्रह 10 अलग अलग मंडलों में मिलता है। संस्कृत भाषा का रिकार्ड ऋग्वेद की उत्पत्ति को 1600 ईसा पूर्व का बताता है। अन्य वेदों की तरह ही ऋग्वेद को भी विद्वान लोग अपौरुषेय ही मानते हैं। जिसका अर्थ होता है “किसी व्यक्ति या किसी विशेष लेखक का नहीं।” ऋग्वेद को चार उपवेदों में वर्गीकृत किया गया। जिनमें सहिताओं में देवताओं की स्तुति है। ब्राह्मण ग्रंथों में प्राचीन कर्मकांडो के भाष्य हैं। आरण्यक अनुष्ठान तथा बलिदान से सम्बंधित हैं तथा उपनिषद में दर्शन है। जिनको वेदांत भी कहा जाता है।
2 . सामवेद
सामवेद धुन तथा मंत्रों का वेद है। इसको आप “गीतों कि पुस्तक” भी कह सकते हैं। यह संस्कृत के दो अक्षरों समन तथा वेद से निर्मित हुआ है। जिनका अर्थ क्रमशः गीत तथा ज्ञान है। इस वेद में शास्त्रीय भारतीय संगीत और नृत्य परंपरा की जड़ो पर अद्भुद कार्य किया गया है। सामवेद के छंदों को विशेष सांकेतिक धुनों का उपयोग करके गाया जाता है। विभिन्न अनुष्ठानों में विद्वानों ने इसको “समागना” भी कहा है। इस वेद को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। जिनमें पहला चार राग संग्रह या समन तथा दूसरा गीत और बाद में अर्किका हैं। 108 उपनिषदों में से दो चंदयोग उपनिषद और केना उपनिषद सामवेद में सन्निहित हैं। चंदयोग उपनिषद में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, समय यह अंतरिक्ष के बारे में दार्शनिक ज्ञान है। वहीं केना उपनिषद बताता है कि कैसे जन्म लेने वाले एक सामान्य व्यक्ति में आध्यात्म के लिए आतंरिक लालसा पैदा होती है।
3 . यजुर्वेद
यजुर्वेद संस्कृत भाषा के मूल यजुस और वेद शब्द के सम्मिलन से निर्मित हुआ है। इन दोनों शब्दों का अर्थ क्रमशः धार्मिक श्रद्धा तथा ज्ञान है। यजुर्वेद को “धार्मिक अनुष्ठानों की पुस्तक” भी कहा जाता है। इस वेद की उत्पत्ति विद्वान लोगों के अनुसार 1200 या 1000 ईसा पूर्व हुई थी। जब की विश्लेषक इस बारे में 1700 ईसा पूर्व का अनुमान लगाते हैं। आपको बता दें कि इस वेद को मोटे तौर पर कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद नामक भागों में बांटा जाता है। कृष्ण यजुर्वेद के अंतर्गत जो छंद आते हैं। वे काफी अस्पष्ट तथा अव्यवस्थित हैं। इस कारण से ही यजुर्वेद के इस भाग को काला यानी कृष्ण यजुर्वेद कहा जाता है। इसके विपरीत सुव्यवस्थित तथा स्पष्ट अर्थ के कारण शुक्ल यजुर्वेद को श्वेत यजुर्वेद भी कहा जाता है।
4 .अथर्ववेद
अथर्व वेद को “अथर्वों के ज्ञान भंडार” के रूप में निरूपित किया गया है। जिसका अर्थ है, मंत्र एवं सूत्र, जो रोगों तथा आपदाओं से लड़ने में अभिप्रेत हैं। इसी कारण अथर्व वेद को “जादुई सूत्रों का वेद” भी कहा जाता है। इसमें आपको दिव्य वेद मंत्र मिलते हैं साथ ही आपको इसमें भजनों तथा प्रार्थनाओं का मिश्रण भी मिलता है। कुछ विद्वानों का कथन है कि इसमें बीमारियों के उपचार के लिए तथा विभिन्न अनुष्ठानों के लिए विशेष मंत्र दिए हुए हैं। अथर्व वेद में आपको 6,000 मंत्रों के साथ 730 भजनों का संग्रह मिलता है। जिनमें मुंडक उपनिषद, मांडुक्य नामक तीन उपनिषद भी शामिल हैं। इस वेद में शल्य चिकित्सा और चिकित्सा संबंधी अनुमानों के बारे में भी लिखा गया है। विभिन्न शारीरिक, मानसिक बीमारियों के लिए इस वेद में मंत्र और छंद भी शामिल हैं।
Types of Vedas – Rigveda, Samaveda, Yajurveda, Atharvaveda
There are four Vedas: the Rigveda, the Yajurveda, the Samaveda and the Atharvaveda. Each Veda has four subdivisions.