नौलखा महल मां सीता के लिए नेपाल में टीकमगढ़ मध्य प्रदेश की महारानी वृषभानु कुंवर बुन्देला / पत्नी महाराजा प्रताप सिंह जू देव बुन्देला ने ₹900000 (नौ लाख) की लागत से बनवाया था,
जनकपुर का नौलखा मंदिर यह हिंदू मंदिर नेपाल के जनकपुर के केंद्र में स्थित है. राजा जनक के नाम पर शहर का नाम जनकपुर रखा गया था। राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें जानकी भी कहते हैं, उनके नाम पर इस मंदिर का नामकरण हुआ था.यह नगरी मिथिला की राजधानी थी.
कहा जाता है कि जनकपुर में ही वैशाख शुक्ल नवमी को मां जानकी का अवतार हुआ था। इस अवसर को जानकी नवमी के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2022 ईसवीं में 24 मई को वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी है । जनकपुर का दूसरा प्रमुख त्योहार विवाह पंचमी का है। इसी दिन सीता जी का भगवान रामचंद्र जी से विवाह हुआ था। इस दिन मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
भगवान श्रीराम से विवाह के पहले सीता ने ज़्यादातर समय यहीं व्यतीत किया था।जानकी मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था। क़रीब 4860 वर्ग मीटर में फैले इस मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु ने करवाया था। इस महल में सामना 265 फिट का है।
‘पहले यहां जंगल हुआ करता था, जहां शुरकिशोर दास तपस्या-साधन करने पहुंचे थे, यहां रहने के दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी. उन्होंने ही इसे वहां स्थापित किया था।
टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु बुन्देला एक बार वहां गई थीं. उन्हें कोई संतान नहीं थी। वहां पूजा के दौरान उन्होंने यह मन्नत मांगी थी कि अगर भविष्य में उन्हें कोई संतान होती है तो वो वहां मंदिर बनवाएंगी। संतान की प्राप्ति के बाद वो वहां लौटीं और साल 1895 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 16 साल में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि उस समय इसके निर्माण पर कुल नौ लाख रुपए खर्च हुए थे, इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं।
मंदिर में 12 महीने अखंड कीर्तन चलता रहता है। 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप यहां लोग करते हैं। साल 1967 से लगातार यहां अखंड कीर्तन चल रहा है।
वर्तमान में राम तपेश्वर दास वैष्णव इस मंदिर के महंत हैं। वे जानकी मंदिर के 12वें महंत हैं. परंपरानुसार अगले महंत का चुनाव वर्तमान महंत करते रहे हैं।
जानकी मंदिर में तीर्थ यात्री न सिर्फ़ भारत से बल्कि विदेशों से भी आते हैं. यहां यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से भी तीर्थ यात्री आते हैं.
मंदिर में मां सीता की मूर्ति अत्यंत प्राचीन है जो 1657 के आसपास की बताई जाती है।
साभार बुंदेलराज जी