गीता: 18 अध्यायों का सार
महाभारत काल में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की रणभेरी बज चुकी थी। कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों सेनाएं आमने-सामने एक दूसरे को ललकार रही थीं तभी महान धनुर्धर अर्जुन का मन अत्यंत ही व्यधित हो गया। अर्जुन के सामने उनके स्वयं के चचेरे भाइयों और रिश्तेदारों की सेना थी। सरल शब्दों में कहें तो अर्जुन ने अपने सगे संबंधियों के विरूद्ध युद्ध करना अस्वीकार कर दिया। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन से जुड़ी कुछ अत्यंत ही महत्वपूर्ण सीख दी, उन्हें उनके कर्तव्यों का बोध कराया। इसके माध्यम से अर्जुन ने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझा। उन्हें ये ज्ञात हुआ कि सही और गलत का चयन कैसे किया जाए। जब स्थितियां जटिल और अस्पष्ट हों तो सही निर्णय कैसे लिया जाए। इसके बाद अर्जुन ने धर्म और अधर्म की इस लड़ाई में प्रतिभाग किया। अर्थात ये वो अनमोल शब्द थे जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहे थे। ये शब्द समस्त संसार के मनुष्यों की सभी समस्याओं के लिए सबसे अच्छी सलाह और समाधान माने जाते हैं जो आज के युग में भी प्रासंगिक हैं और इसी को सारा संसार “भगवद गीता” के नाम से जानता है। “भगवद गीता” में 18 अध्याय हैं जिनमें श्रेष्ठ मानव जीवन का सार समाहित है।
अध्याय 1
त्रुटिपूर्ण विचार ही जीवन की एकमात्र समस्या है ।।
यदि आप अपना जीवन हर्ष-उल्लास से जीते हैं तो इसी प्रवाह में जीवन व्यतीत करें। बहुत अधिक की चाह ना करें। यदि आप अधिक की चाह रखते हैं तो बेहतर होगा कि सही पथ ही चुनें। अगर आप अनुचित पथ पर आगे बढ़ते हैं तो आपको पाप करना होगा। आश्चर्य की बात है कि ऐसी स्थिति में आपको ये आभास भी नहीं होगा कि आप पाप के भागी बन रहे हैं। अतः अपने मन मस्तिष्क में किसी भी प्रकार के जहरीले विचारों को ना आने दें।
अध्याय 2
सही ज्ञान ही हमारी सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है ।।
एक बुद्धिमान मस्तिष्क के बिना आप एक बुद्धिमान व्यक्ति के साथ उचित तर्क में विजय नहीं प्राप्त कर सकते। ज्ञान हमें यह चुनने के लिए प्रबुद्ध करता है कि हमें कब क्या करना है। ज्ञान ही हमें सिखाता है कि हमें कहां चुप रहना है और कहां गर्जना करना है। उचित माध्यमों पर ध्यान देना और बुरे माध्यमों से बचने की कला हमें ज्ञान ही सिखाता है।
अध्याय 3
निःस्वार्थ होना ही प्रगति और समृद्धि का एकमात्र मार्ग है ।।
इसमें निःस्वार्थ भाव का गुण है। इस बात की चिंता ना करें कि दूसरे क्या कहेंगे या दूसरों से कुछ न कहें। अपने आप पर ध्यान दें। अपना काम स्वयं करते रहें। एक आकर्षक व्यक्तित्व का निर्माण करें। एक अच्छे वेतन के साथ-साथ शाश्वत गौरव अर्जित करें। दूसरे के धन या शिक्षा की ओर ना देखें और ना ही उसके बारे में सोचें। ईर्ष्या आपको केवल दुर्बल बनाती है और आपके विरोधी को शक्तिशाली बनाती है। करने के लिए हजारों काम हैं। आपकी प्रतियोगिता किसी और के बजाय अपने आप से होनी चाहिए। अपने जुनून को पालें, अपने सपनों का पीछा करें और अपने आज को कल से बेहतर बनाने और संवारने की कोशिश करें।
अध्याय 4
हर कार्य प्रार्थना का कार्य हो सकता है ।।
विनम्र बनें, कृतज्ञता दिखाएं। सत्यनिष्ठ उद्देश्यों के साथ अपने जीवन को गरिमामय बनाएं। दूसरों को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास ना करें। बुरे विचारों से बचें। ध्यान करें। शांत रहें। दयालु बनें।
अध्याय 5
व्यक्तिगत अहंकार का त्याग करें और अनंत के आनंद में सुख की अनुभूति लें ।।
केवल अपने सारे अहंकार का परित्याग करें। यह अहंकार शब्द एक स्वस्थ रिश्ते को नष्ट करने वाला सबसे जहरीला शब्द है। आनंद लें और अपनी सफलता का आनंदोत्सव मनाएं। श्रृष्टि में अनंत सुख हैं, बस आवश्यकता है उन्हें ढूंढने की। बहुत गहराई में ना जाएं। सुख आपके चारों ओर है। बस अपनी नन्ही आंखें खुली रखें और अपने उदार हृदय को सुखों के लिए प्रवेश के योग्य बनाएं।
अध्याय 6
अपने दैनिक जीवन में सदा उच्च चेतना से जुड़े रहें ।।
सचेत रहें। आपके आस-पास और आपके आगे-पीछे क्या हो रहा है, इसके बारे में सदा सचेत रहें। उन लोगों पर विशेष ध्यान रखें जो आपकी सफलता के दौरान आपके लिए ताली नहीं बजाते। वे लोग आपके व्यस्त जीवन का हिस्सा हैं। वे आपके साथ खाते हैं, आपके साथ खेलते हैं, आपके साथ अन्य प्रकार के आनंद लेते हैं लेकिन आप कभी नहीं जानते कि वे दुष्ट लोग हैं जो आपकी प्रगति में बाधा डालते हैं।
अध्याय 7
आप जो सीखते हैं उसे जियें ।।
प्रतिदिन एक ही प्रकार की गलतियां ना करें। अपनी गलतियों को सुधार कर स्वयं को सुधारें। सीखने का कोई अंत नहीं है। जीवन में सुखी और समृद्ध रहने के लिए उन युक्तियों को अपने जीवन में लागू करें।
अध्याय 8
कभी भी हार ना मानें ।।
वर्तमान समय में सबसे प्रसिद्ध और प्रेरणा देने वाला उद्धरण। सरल शब्दों में, “चाहे जैसी भी परिस्थिति आ जाए, कभी भी हार ना मानें”। अपना जीवन इस सिद्धांत को आपनाकर जियें, कि खेल तब तक खत्म नहीं होता जब तक मैं इसे खत्म नहीं करूंगा। मेरे रक्त में हार मान लेने की प्रवृति है ही नहीं। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करें, बार-बार कोशिश करें, गिरें, फिर से गिरें, एक बार फिर कोशिश करें और अगर आप कोशिश करते रहेंगे तो आपका दिन आ ही जाएगा। इसमें कुछ समय, कुछ दिन, कुछ महीने, या साल भी लग सकते हैं लेकिन अगर आपके प्रयास गतिशील हैं तो निश्चित ही एक दिन आपकी विजय होगी। आपका समय जरूर आएगा। देर से समाप्त होने का मतलब यह नहीं है कि आप दौड़ से बाहर हो गए हैं। नहीं, यह आपका पथ है, आपका समय है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप इस दौड़ को कब पूरा करते हैं, यह मायने रखता है कि आपने कैसे शुरुआत की और आपने अपने संघर्ष का आनंद कैसे लिया और आपने कैसे इसे समाप्त किया। वास्तव में आपका युग यहीं से शुरू होता है।
अध्याय 9
स्वयं को मिलने वाले आशीर्वाद को महत्व दें ।।
प्रतिदिन सुबह उठकर माता-पिता के चरण स्पर्श करें। वास्तव में वे आपके लिए जीवित देवता हैं। भगवान को धन्यवाद कहें, एक इंसान के रूप में जन्म लेने के लिए आभारी होने का अनुभव करें और इस तरह की जीवन शैली जिएं। वहां लाखों गरीब लोग ऐसे हैं जो आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं यानी भोजन, कपड़ा, और आश्रय। अपनी जीवनशैली की हमेशा निंदा ना करें। सब कुछ भगवान का आशीर्वाद है।
अध्याय 10
चारों ओर दिव्यता का अनुभव करें ।।
जो लोग भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, उनके लिए यह काफी मुश्किल है। उदाहरण के लिए एक पहाड़ी पर चढ़ने के दौरान जिस रस्सी की सहायता लेते हैं, उस रस्सी में विश्वास करना उनके लिए भगवान में विश्वास करना नहीं है। बस इसके बारे में कुछ देर सोचें। मैं आपसे यह नहीं कह रहा कि रोज मंदिर जाएं और भगवान की पूजा करें या विशेष दिनों में उपवास करें। नहीं, बस भगवान की उपस्थिति को स्वीकार करें। यदि आप कुछ भी गलत करते हैं तो आपके लिए दंड का प्रावधान होगा। इसे ध्यान में रखते हुए ही अपना जीवन व्यतीत करें।
अध्याय 11
सत्य जैसा है उसे वैसा देखने के लिए पर्याप्त समर्पण करें ।।
निर्णय लेते समय, न्याय करते समय या जांच करते समय अपनी आंखों से काला कपड़ा हटा दें। यहां काला कपड़ा उस प्रेम, स्नेह, अंध विश्वास, भावनाओं, अहंकार और क्रोध का प्रतीक है। ये आपको वास्तविक दुनिया को देखने और सच्चाई का सामना करने की अनुमति नहीं देते हैं। तो उन सभी चीजों को समर्पित कर दें, अपने दिल को पारदर्शी बनाएं ताकि कोई भी आपके साफ दिल की आंतरिक सुंदरता को देख सके और आप पूरी दुनिया को वास्तविक रूप में देख सकें।
अध्याय 12
अपने मन और हृदय को परम पिता परमेश्वर में समाहित करें ।।
बस अपना दिल और दिमाग भगवान को समर्पित कर दें। भक्ति मार्ग पर अपने जुनून, हृदय और संपूर्ण समर्पण भाव से आगे बढ़ें। आप निश्चित ही अलग तरह से अनुभव करेंगे। ऐसा करने से परेशानियां और चिंताएं कम होने लगती हैं। आप धीरे-धीरे परिपक्व हो जाएंगे। आप अपनी सफलता से अति उत्साहित नहीं होंगे और अपनी असफलताओं से निराश भी नहीं होंगे। अर्थात आप जीना सीख जाएंगे।
अध्याय 13
माया से अलग हो जाएं और परमात्मा से जुड़ जाएं ।।
सबसे पहले आपको यह समझने की आवश्यकता है कि इस बदलती दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। ऐसे में बेवजह अभिमान कैसा? सुंदरता, धन, पद, काम, विलासिता, यह सब भ्रम हैं। जब हम यह नहीं समझ पाते है कि किसका अनुसरण करना है, तब देवत्व का अनुसरण करें। प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का सार ढूंढने का प्रयास करें। खुद से प्यार करें। इस संसार में हम अकेले आए हैं और अकेले ही यहां से जाएंगे। इसलिए सभी प्रकार की माया का त्याग करें और जीवन में शांति पाएं।
अध्याय 14
ऐसा जीवन जिएं जो आपकी दृष्टि से मेल खाता हो ।।
हर मनुष्य का कोई न कोई सपना होता है और प्रत्यक्ष रूप से यह स्पष्ट भी है क्योंकि यही हमारे जीवन का उद्देश्य है। अतः अपने उद्देश्य का पीछा करें। उस प्रकार की जीवन शैली जिएं। दूसरों से अवश्य सीखें लेकिन दूसरों की नकल ना करें, हर किसी की जीवन अलग होता है। प्रभाव और प्रभावित करने जैसे शब्दों को अच्छे विचारों के साथ ही सम्मलित करना चाहिए। केवल आंखें बंद करके अपने आदर्श या प्रेरणास्रोतों का अनुसरण न करें। अपने आप को उस स्थिति में देखें जो आप चाहते हैं और उसके लिए कर्म करें।
अध्याय 15
देवत्व को प्राथमिकता दें ।।
एक बार पुनः दिव्य; देवत्व, दिव्यता, देवभक्ति, ईश्वरत्व। ये केवल अलग-अलग पर्यायवाची हैं। इसे प्रत्येक कण, वस्तु, व्यक्ति, स्थान और पदार्थ में ढूंढने का प्रयास करें। आपका जीवन अत्यंत ही आसान हो जाएगा, आपके अचेतावस्था में भी चीजें अपने आप हो जाएंगी। प्यार और स्नेह से लिपटे उपहार के रूप में सबसे अच्छी चीज आपके पास आएगी।
अध्याय 16
अच्छा होना अपने आप में एक पुरस्कार है ।।
अच्छे काम करने से आप किसी का भला नहीं करेंगे। यह आचरण एक प्रकार का निवेश है जिसका प्रतिफल आपको चक्रवृद्धि ब्याज के साथ मिलेगा। संभवतः यह इतनी राशि के समान होगी जो आपने पहले कभी नहीं देखी होगी। कोई भी आपको नहीं सिखाता या आपसे अनुरोध नहीं करता है या आपको सुझाव नहीं देता है या फिर आपको अच्छे काम करने के लिए बाध्य नहीं करता है। यह स्वाभाविक रूप स्वतः जागृत होता है। कोई भी इसके लिए मेडल या उपहार या प्रशंसा नहीं देता है, लेकिन यह एक सांत्वना अवश्य है। इसके फलस्वरूप जब आप रात के समय सोएंगे तो आपको चैन की नींद आएगी। जब आप एक दर्पण के सामने खड़े होकर कुछ आत्मनिरीक्षण करते हैं तो आप और केवल आप ही उस सुख और शांति को देख पाएंगे और संतोष का अनुभव कर पाएंगे। किसी को भी ना तो शारीरिक रूप से ना मानसिक रूप से ना प्रत्यक्ष और ना ही परोक्ष रूप से कुछ भी नुकसान न पहुंचाएं। आपकी आत्मा भगवान के साथ विलीन हो जाएगी और आपको जन्म चक्र की पुनरावृत्ति के बिना पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होगी।
अध्याय 17
सुखद पर उचित का चुनाव शक्ति की निशानी है ।।
सामान्य लोग ऐसा नहीं कर सकते। यह कोई आसान काम नहीं है। ऐसा निर्णय लेने के लिए आपके पास पर्याप्त हिम्मत, साहस और नैतिकता होनी चाहिए। सबसे सरल उदाहरण एक रिश्ते में दिखता है। मान लीजिए कि एक लड़का दूसरे शहर में मौजूद एक लड़की से दूर रह रहा है। उसे उस लड़की से प्रस्ताव मिला, जो बहुत सुंदर है, स्टाइलिश है, अच्छी दिखने वाली है और महत्वपूर्ण बात यह है कि वह एक रिश्ते के मूल्यों की परवाह नहीं करती है और केवल टाइम पास, मूवी, कॉफी, नाइट आउट, रोमांस, पार्टियां जौसी चीजों को पसंद करती है। लड़के के पास उसके प्रस्ताव को अपनाने का सुनहरा अवसर होता है। लेकिन अगर वह अपनी प्रेमिका के बारे में सोचता है जो उसके सफल आगमन की प्रतीक्षा कर रही है और उसके साथ शादी के बंधन में बंधने का सपना देख रही है और फिर भी वह उस लड़की के प्रस्ताव को ठुकरा देता है, तो लड़का सामान्य व्यक्ति नहीं है। धोखा देना गलती है या चुनाव, इसका उत्तर हर कोई चुनाव के रूप में देता है। लेकिन यहां आपको एक बात समझनी होगी कि चुनाव के रूप में धोखा देना एक गलती है। नैतिक बनें, जीवन में सही चीजों का चुनाव करें, शायद यह कठिन है, बहुत कठिन है, लेकिन यह कभी भी असंभव नहीं हो सकता।
अध्याय 18
आइए चलें भगवान के साथ मिलन की ओर बढ़ते हैं ।।
संस्कृत में एक वाक्यांश है जिसे आप सभी भली-भांति जानते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम्।
वाक्यांश वसुधैव कुटुम्बकम् में संस्कृत के तीन शब्द हैं: “वसुधा” अर्थात पृथ्वी; “इव” अर्थात है; और “कुटुम्बकम्” अर्थात परिवार। पृथ्वी हमारा परिवार है, इसलिए हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं और हमारे लिए विकास का अर्थ है सभी का विकास। वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है।
हमारा जीवन काल बहुत छोटा है। हम जितने वर्ष भी जीते हैं, हमें अपने जीवन को भरपूर जीना चाहिए। सबों को अपना भाई-बहन समझें। जिन्हें जरूरत है उनकी मदद करें, जो पात्र हैं उनका सम्मान करें, विश्वासघात करने वालों को क्षमा करें, सभी से प्यार करें, किसी से घृणा ना करें, निष्ठावान रहें, अपने मित्रों और संबंधियों से ईर्ष्या ना करें। उनकी सफलता से खुश रहने की कोशिश करें और उनके दुखों पर विलाप करें। कभी किसी का बुरा मत सोचें। हम सब भगवान के बच्चे हैं। एक ईश्वर है, एक धर्म है। मतभेद हमने किए हैं, इसलिए उन जाति धर्म के बंधनों को भूलकर, एक दूसरे को क्षमा और प्रेम करके हम अपने गौरव का उत्सव मनाएंगे और अपने भाग्य को अपने हाथों से फिर से लिखेंगे। इतिहास में हमारा नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि हम सब इंसान हैं; जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा के बावजूद हम सब एक समान हैं और प्रत्येक के रक्त का रंग लाल है।
अगर भगवद गीता को एक पंक्ति में सारांशित किया जाए तो वह होगा; ‘पापों का अंत और सद्गुणों की जीत’।।