श्रीराम मंदिर, अयोध्या जी
हिन्दू महाकाव्य रामायण के नायक भगवान राम अयोध्यापुरी के कण-कण में बसते हैं। सत्य, धर्म और मर्यादा के प्रतीक माने जाने वाले भगवान राम का अयोध्यापुरी से अटूट नाता है। त्रेता युग में असुरों का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने प्रभु श्रीराम के अवतार के रूप में इसी स्थान पर जन्म लिया था। देश-दुनिया में श्रीराम के कई मंदिर हैं किंतु अयोध्यापुरी के राम जन्मभूमि मंदिर में रामभक्तों की सबसे अधिक आस्था है। आज अयोध्या जी में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर एक बार फिर से साकार रूप ले रहा है।
अयोध्यापुरी में सरयू नदी के तट पर आकार ले रहा श्रीराम मंदिर सनातनियों के लिए सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। मान्यता है कि अयोध्यापुरी को प्रभु श्रीराम के पूर्वज वैवस्वत मनु ने बसाया था और महाभारत काल तक यहां सूर्यवंशी राजाओं का शासन चलता रहा। महर्षि वाल्मिकी की रामायण में भी इस अयोध्या नगरी की अद्भुत छटा का वर्णन मिलता है। उन्होंने प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली यानी अयोध्यापुरी के महत्व की तुलना इंद्रलोक से भी की है।
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने जब जल समाधि ले ली, उसके पश्चात कुछ समय के लिए अयोध्या नगरी उजड़ने लगी। हालांकि इन सबके बीच भी राम जन्मभूमि पर बना महल अपने मूल स्वरूप में बना रहा। फिर प्रभु श्रीराम के पुत्र कुश ने अयोध्यापुरी को फिर से बसाने का बीड़ा उठाया और इस नगर का पुनर्निमाण कराया। इसके बाद इस पवित्र भूमि पर सूर्यवंशी राजाओं की 44 पीढ़ियां शासन करती रहीं और श्रीराम जन्मभूमि की देखभाल होती रही। इसके पश्चात भी श्रीराम जन्मभूमि में लोगों की अटूट आस्था बनी रही और यहां नियमित पूजा-पाठ होता रहा। इसके बाद इतिहास में जो उल्लेख मिलते हैं उसके अनुसार श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व तो बना रहा लेकिन अयोध्यापुरी उजड़ती चली गई।
चमत्कारों से प्रभावित होकर विक्रमादित्य ने कराया मंदिर निर्माण
माना जाता है कि ईसा से 100 वर्ष पूर्व चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन अचानक अयोध्या जा पहुंचे। थकान के कारण वो सरयू तट पर अपनी सेना के साथ आराम करने लगे। तभी उन्हें उस पवित्र भूमि पर कई चमत्कारों का अनुभव हुआ। उन्होंने वहां के संतों से उन चमत्कारों के बारे में पूछा तब उन्हें ज्ञात हुआ कि वो कोई साधारण भूमि नहीं है, बल्कि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अवधपुरी है। तब सम्राट विक्रमादित्य ने वहां 84 स्तंभों पर आधारित भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनवाया। इसके साथ ही वहां महल, कूप और सरोवरों का निर्माण भी कराया गया जिनकी भव्यता देखते ही बनती थी।
विक्रमादित्य के बाद भी अलग-अलग राजाओं ने श्रीराम मंदिर की देखरेख का कार्य जारी रखा। ऐतिहासिक उल्लेखों से ज्ञात होता है कि शुंग वंश के प्रथम राजा पुष्यमित्र शुंग ने भी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। कई ऐतिहासिक अभिलेखों से ये भी ज्ञात होता है कि लंबे समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की भी राजधानी थी। उस काल के महाकवि रहे कालिदास ने भी अयोध्या और यहां के राम मंदिर का कई बार उल्लेख किया है। 600 ईसा पूर्व ये स्थान प्रमुख बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में भी विकसित हुआ। तब इस नगर का नाम साकेत हुआ करता था जहां आदिनाथ समेत 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ। उस काल में इस नगरी में 20 बौद्ध मंदिरों के साथ एक भव्य हिन्दू मंदिर भी हुआ करता था जहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते थे।
11वीं सदी में कन्नौज के राजा जयचंद हुए जिन्होंने अयोध्या के श्रीराम मंदिर के शिलालेख पर अपना नाम लिखवा दिया। इसी काल में भारत पर विदेशी आक्रांताओं का आक्रमण अत्यधिक बढ़ गया। काशी, मथुरा और अयोध्या में मंदिरों और मूर्तियों को खंडित किया जाने लगा। साधु-संतों के साथ भी क्रूरता की जाने लगी। अनगिनत आक्रमणों के बाद भी अयोध्या का भव्य श्रीराम मंदिर 14वीं शताब्दी तक सुरक्षित रहा।
माना जाता है कि मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1527-28 में भव्य राम मंदिर को तोड़ दिया और वहां बाबरी ढांचा खड़ा कर दिया जो साल 1992 तक रहा।
ऐतिहासिक तथ्य है कि इक्ष्वाकुवंश के एक पुरोधा परिवार ने ने अपनी सेना के अकाली योद्धाओं द्वारा 1858 में बाबरी ढांचे में रामलला का विग्रह यज्ञादि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित कर स्थापित करवाया। ब्रिटिश पुलिस को 7 दिन लगे उन योद्धाओं को बाबरी ढांचे से निकाल कर गिरफ्तार करने में। उसके बाद उनपर एफआईआर भी दर्ज हुई, जिसका उल्लेख सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्मभूमि के अपने निर्णय में भी किया था।
अंततः 5 अगस्त 2020 को आखिरकार वो शुभ घड़ी भी आ गई जब प्रभु श्रीराम के भव्य और विराट मंदिर निर्माण की प्रक्रिया एक बार फिर से आरंभ हो गई।