हिंदू चंद्र कैलेंडर का प्रथम माह चैत्र कहलाता है। इसी कारण इस माह में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि पर्व के समय देवी दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम नौवें दिन भगवान श्रीराम का जन्म दिवस राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि को लेकर काफी असमंजस कि स्थिति है। कुछ लोगों का कहना है कि यह इस वर्ष 21 मार्च से है लेकिन कुछ लोग इसको 22 मार्च से प्रारंभ होना बता रहें हैं। अतः सबसे पहले हम आपको यहां बता रहें हैं कि इस वर्ष चैत्र नवरात्रि किस तिथि से शुरू हो रही है तथा इस वर्ष कलश पूजन का सही मुहूर्त क्या है।
चैत्र नवरात्रि की सही तिथि तथा घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
मुहूर्त द्रिक पंचांग के अनुसार चैत्र घट स्थापना बुधवार 22 मार्च 2023 को होगी। घट स्थापना का मुहूर्त प्रातः काल 6.23 से 7.32 तक रहेगा। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 21 मार्च 2023 को रात्रि 10.25 मिनट पर हो रहा है तथा 22 मार्च 2023 को रात्रि 8.20 मिनट पर प्रतिपदा तिथि का समापन होगा।
चैत्र नवरात्रि की तिथियां
1 . 22 मार्च 2023 – मां शैलपुत्री पूजा।
2 . 23 मार्च 2023 – मां ब्रह्मचारिणी पूजा।
3 . 24 मार्च 2023 – मां चंद्रघण्टा पूजा।
4 – 25 मार्च 2023 – मां कुष्माण्डा पूजा।
5 . 26 मार्च 2023 – मां स्कंदमाता पूजा।
6 . 27 मार्च 2023 – मां कात्यायनी पूजा।
7 . 28 मार्च 2023 – मां कालरात्रि पूजा।
8 . 29 मार्च 2023 – मां महागौरी पूजा।
9 . 30 मार्च 2023 – मां सिद्धिदात्री पूजा, राम नवमी।
नवरात्रि के 9 दिनों का महत्व
नवरात्रि के समय में प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है। ऐसे समय में हमारी आतंरिक चेतना, शारीरिक तथा मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन होता है। विश्व ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति तथा हमारे शरीर में बीज रूप में स्थित शक्ति को समझने से ही शक्ति पूजन का महत्व समझ में आता है। इस कार्य के संपादन के लिए नवरात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। देखा जाए तो चैत्र तथा अश्विन माह के नवरात्र का समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है। ऋतु तथा प्रकृति का हमारे जीवन तथा चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः हमारे महान पूर्वजों ने सर्दी तथा गर्मी इन दोनों ऋतुओं के संधिकाल को नवरात्र का नाम बहुत सोच समझ कर दिया है। वर्ष के इन नौ दिनों में अन्न का परित्याग कर भक्ति करने से शरीर तथा मन पर व्यापक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा ये स्वस्थ रहते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इन नौ दिनों का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जो भक्त लोग इन दिनों अन्न का त्याग कर देवी मां का ध्यान करते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं या वे जो भी संकल्प लेकर पूजन करते हैं। वह पूरा होता है।
नवरात्रि में कलश स्थापना विधि
कलश स्थापना के लिए आप सूर्योदय से पहले उठ जाएं। इसके बाद स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें। अब अपने पूजन के स्थान को साफ़ तथा शुद्ध करने के बाद उस पर लाल रंग का साफ़ कपडा बिछा दें तथा देवी मां की प्रतिमा को स्थापित कर दें। लाल कपड़े पर आप थोड़े से जौ बो दें तथा अब इसके पास में एक मिट्टी के पात्र में जौ बो दें। इस पात्र पर एक जल से भरा कलश स्थापित कर उस पर कलावा बांधे तथा स्वस्तिक का चिन्ह बना दें।
कलश में सिक्का, अक्षत, साबुत सुपारी को डालकर अशोक के पत्ते रखें। अब एक नारियल लें तथा उसके ऊपर लाल चुनरी को लपेट कर कलावे से बांध लें ओर नारियल को कलश के ऊपर स्थापित कर दें। इसके उपरांत देवी दुर्गा का आवाहन करें तथा दीपक को जलाकर कलश पूजन करें।
चैत्र नवरात्रि के अलग अलग नाम
आपको जानकारी बता दे दें कि चैत्र नवरात्रि को हमारे देश में अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। इसको बहुत से लोग वसंत नवरात्रि या वासंतिक नवरात्रि के नाम से भी जानते हैं। वहीं चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि देवी दुर्गा के साथ साथ भगवान श्रीराम को भी समर्पित है। इसके पीछे का कारण यह है कि भगवान श्रीराम का जन्म दिवस चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसी कारण चैत्र नवरात्रि को श्रीराम भक्त “राम नवरात्रि” भी कहते हैं। चैत्र नवरात्रि के पर्व को देश के अलग अलग कोने में अलग अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत के भाग में इसको चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। वहीं महाराष्ट्र में इसको गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के लोग चैत्र नवरात्रि को उगादी के नाम से जानते हैं।
देश के अलग अलग भागों में इस प्रकार मनाया जाता है चैत्र नवरात्रि का पर्व
चैत्र नवरात्रि का पर्व नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। चैत्र की नवमी तिथि को भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। अतः इस दिन भगवान श्रीराम से जुड़े सभी स्थानों को बहुत सुंदरता से सजाया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त इन स्थानों पर आते हैं। दक्षिण भारत में चैत्र नवरात्रि पर्व को उगादी के नाम से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना तथा कर्नाटक में यह पर्व अपना विशेष महत्व रखता है। इस पर्व के दौरान दक्षिण भारत के मंदिरों को सजाया जाता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को नई फसल के आवागमन के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में लोग वहां के मंदिरों में जाते हैं। दक्षिण भारत में इस पर्व की शुरुआत तेल स्नान से की जाती है तथा पर्व के दौरान नीम की पत्तियां खाने की भी प्रथा है। इस पर्व के दौरान सभी नए कपड़े पहनते हैं तथा अत्यंत हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मानाया जाता है।
महाराष्ट्र तथा गोवा में चैत्र नवरात्रि के इस पर्व को गुड़ी पड़वा के नाम से जानते हैं। गुड़ी का अर्थ ध्वज होता है, वहीं प्रतिपदा को पड़वा के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं प्रातःकाल स्नान कर घर में विजय के रूप में गुड़ी अर्थात ध्वज को लगाती हैं तथा ध्वज का पूजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर की नकारात्मकता दूर हो जाती है। इस दिन घर में कई पकवान बनाये जाते हैं खासतौर पर पूरन पोली तथा खीर का आनंद लिया जाता है।
चैत्र नवरात्रि पर्व का वैज्ञानिक कारण
चैत्र नवरात्रि के पर्व को यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में आते हैं। इस समय दो ऋतुओं का समागम होता है। अतः मानव शरीर में कफ, पित्त तथा वात का समायोजन घट बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अतः नौ दिन के व्रत तथा अनुशासन युक्त जीवन प्रणाली से शरीर की शुद्धि, ध्यान से मन की शुद्धि तथा यज्ञ से वातावरण की शुद्धि हो जाती है। जिसके फलस्वरुप शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है।
चैत्र नवरात्रि में करें इन नियमों का पालन
1 . चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए नौ दिनों तक व्रत अवश्य रखें। यदि यह संभव न हो तो पहले, चौथे तथा आंठवे दिन व्रत अवश्य रखें।
2 . पहले ही दिन अपने पूजन स्थल पर देवी दुर्गा के साथ देवी लक्ष्मी तथा देवी सरस्वती की प्रतिमा अवश्य रखें तथा सभी का पूजन करें।
3 . घर में सुख समृद्धि बनाये रखने के लिए नवरात्रि के नौ दिनों तक पूजन स्थल में अखंड दीपक अवश्य जलाएं।
4 . जो भी व्यक्ति नवरात्रि का व्रत करें वह नौ दिन तक नमक तथा अन्न का सेवन न करें। जो लोग बिना नमक के सेवन के नहीं रह सकते हैं। वे सेंधा नमक का सेवन कर सकते हैं। इन दिनों में अपने मन या शरीर से किसी के प्रति बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए।
5 . व्रत के दिनों में आप प्रतिदिन दुर्गा शप्तशती का पाठ करें अन्यथा किसी पंडित से अवश्य कराएं। पूजन के दौरान आप लाल रंग के वस्त्र धारण करें तथा लाल रंग का ही आसान का प्रयोग करें।
6 . पूजन के समय आप देवी दुर्गा को लौंग तथा बताशे का भोग लगा सकते हैं परंतु तुलसी पत्र या दूर्वा का उपयोग पूजन में न करें। गुलहड़ के फूल मां दुर्गा को अत्यंत प्रिय हैं। यदि ये उपलब्ध न हों तो लाल रंग के कोई अन्य फूल देवी दुर्गा को चढ़ा सकते हैं।
- व्रतरखने वाले व्यक्ति दोनों समय साबूदाने की खिचड़ी का सेवन कर सकते हैं। सात्विक भोजन करें। अन्न का उपयोग न करें। पूजन के अंत में किसी भी प्रकार से हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना अवश्य करें।