मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत : पौराणिक कथा, महत्व तथा पूजन विधि
नवरात्री अथवा दुर्गा पूजन के आंठवे दिन को दुर्गा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसी को महाष्टमी भी कहा जाता है। यह अश्विनी माह में नौ दिनों के नवरात्र उत्सव के दौरान मनाई जाती है। दुर्गा अष्टमी व्रत प्रत्येक माह में भी एक बार किया जाता है। इस बार यह व्रत 27 फरवरी 2023 के दिन है। इस व्रत को करने से आपकी मनोवांछित इच्छाएं पूरी होती हैं तथा जीवन में चल रही कई प्रकार की समस्याओं से सहज ही छुटकारा मिल जाता है।
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व
संस्कृत भाषा में दुर्गा शब्द का अर्थ अपराजित होता है अर्थात जो किसी से पराजित न हुई हो। अष्टमी का अर्थ होता है आंठवा दिन। इस अष्टमी के दिन ही देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। इसी कारण इस तिथि को दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन देवी दुर्गा ने देवी भद्रकाली के रौद्र रूप को धारण किया था। अतः इस दिन देवी भद्रकाली की उपासना भी की जाती है। लोक मान्यता है कि आज के दिन दुर्गा अष्टमी के व्रत को जो भी व्यक्ति पूरे समर्पण भाव तथा भक्ति से करता है। उसे देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा उसके जीवन से सभी प्रकार के कष्टों का नाश हो जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन व्रत करने से मानव जीवन में विकास, शांति तथा सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा शरीर रोग मुक्त तथा जीवन भय मुक्त होता है।
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में दुर्गम नामक असुर ने तीनों लोकों में अशांति ओर अत्याचार फैला रखा था। सभी मानव तथा देवता गण भी उससे भय खाते थे। देवगण दुर्गम नामक उस असुर को मार नहीं सकते थे इसलिए वे सभी मिलकर कैलाश पर चले गए तथा उन्होंने वहां भगवान शिव से इस समस्या में हस्तक्षेप करने की प्रार्थना की।
इस समस्या के निदान के लिए भगवान ब्रह्मा, बिष्णु तथा शिव ने अपनी समस्त शक्तियों को एक साथ मिलाकर शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी दुर्गा को प्रकट किया। इसके बाद देवी दुर्गा तथा दानव दुर्गम में युद्ध प्रारंभ हो गया। इस युद्ध में देवी दुर्गा ने दुर्गम नामक उस असुर का वध कर दिया। जिसके बाद में देवी दुर्गा की तीनों लोको में जय जयकार होने लगी। चूंकि इस दिन देवी दुर्गा का अवतरण हुआ था अतः इस दिन को दुर्गा अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत की पूजन विधि
आप जानते ही हैं कि देवी दुर्गा के नौ रूप हैं। नवरात्र में प्रत्येक दिन एक रूप की उपासना की जाती है। इसी क्रम में अष्ठमी को देवी दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। महागौरी के रूप की तुलना चंद्रमा अथवा शंख से की जाती है। वे एक 8 वर्षीय बच्चे के रूप में देखी जाती हैं। इस रूप में उनके चार हाथों में से दो वरदान तथा आशीर्वाद देने की मुद्रा में होते हैं। अन्य दो हाथों में त्रिशूल तथा डमरू को धारण किये रहती हैं। इस दिन देवी महागौरी को सफ़ेद रंग के वस्त्रों में बैल के ऊपर विराजित होते देखा जाता है।
दुर्गा अष्टमी व्रत के पूजन के लिए प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर देवी दुर्गा से प्रार्थना की जाती है। इसके पश्चात धूप, दीप तथा नैवेध से देवी दुर्गा का पूजन किया जाता है। इस दिन पान के पत्ते, लौंग, इलायची, सूखे मेवे, केले तथा नारियल को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। पूजन करने के लिए पूजा स्थल को तैयार कर पंचामृत बना लें तथा अखंड जोत को प्रज्ज्वलित करें। इसके बाद में हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
“सर्व मंगलाय मांगल्ये, शिवे सर्वथा साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते”
इसके बाद में हाथ में पकडे हुए अक्षत तथा फूलों को देवी दुर्गा को अर्पण कर दें तथा दुर्गा चालीसा का पाठ प्रारंभ कर दें तथा उसके बाद में आरती तथा क्षमा प्रार्थना कर पूजन का समापन करें।
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत में ध्यान देने योग्य बातें
दुर्गा अष्टमी व्रत को स्त्री तथा पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। इस दिन सभी को व्रत करना होता है। व्रत दूध, दही, फल आदि का सेवन करके भी किया जा सकता है। इस दिन विलासिता से दूर रहना आवश्यक होता है तथा अभक्ष्य पदार्थों का सेवन निषिद्ध होता है। इस दिन पूजन के उपरांत शंख अथवा घंटी बजाना शुभ माना जाता है। इस व्रत में प्रातःकाल तथा संध्या से समय दो बार देवी दुर्गा का पूजन किया जाता है। इस दिन 6 से 12 वर्ष की लड़कियों को भोजन प्रसाद खिलाने की परंपरा है। 5, 7, 9 अथवा 11 लड़कियों के समूह को भोजन प्रसाद खिलाने के उपरांत उनके पैर धोये जाते हैं तथा उनको तिलक किया जाता है। इसके बाद उन सभी को उपहार देकर विदा किया जाता है। इस प्रकार से इस व्रत को पूर्ण किया जाता है।