ओणम पर्व 2023 : यहां जानें इस पर्व का शुभ मुहूर्त, महत्व तथा पूजन विधि
ओणम हमारे देश के दक्षिण भाग का एक प्रमुख पर्व है। सामान्यतः तो इस पर्व को केरल में मनाया जाता है लेकिन पूरे दक्षिण भारत में इस पर्व का उल्लास साफ़ देखा जाता है। ओणम नामक इस पर्व को मलयालम भाषा में “पक्कम” कहा जाता है। यह पर्व 10 दिन तक चलता है। इस पर्व को मुख्यतः फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है। इसके अलावा यह त्योहार भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी सयुंक्त है। इस पर्व की शुरुआत घर में रंग बिरंगे फूलों की रंगोली बनाकर किया जाता है।
ओणम पर्व में प्रतिभोज का विशेष महत्व है। इस दिन सभी केरलवासी षडरस व्यंजनों का भोजन बनाते हैं। इस पर्व पर मंदिर तथा अन्य स्थलों को फूलों से सजाया जाता है। लोग इस पर्व के दिन एक दूसरे के घर पर जाते हैं तथा उपहार ओर मिठाइयां देते हैं। इस पर्व पर नौकायन का कार्यक्रम होता है तथा नावों की दौड़ प्रतियोगिता आयोजित होती है। स्थान स्थान पर इस पर्व पर सभाएं तथा नृत्य होते हैं।
ओणम पर्व का महत्व
मलयालम सौर पंचांग के अनुसार ओणम का पर्व चिंगम माह में मनाया जाता है। चिंगम माह को मलयालम लोग वर्ष का पहला माह मानते हैं। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चिंगम माह अगस्त या सितंबर में होता है। आपको जानकारी दे दें की ओणम के 10 दिन तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन का एक अलग महत्व होता है। इस त्योहार में लोग अपने घर को 10 दिनों तक फूलों से सजाकर रखते हैं। इसी के साथ लोग राजा महाबली तथा भगवान बिष्णु की पूजा भी करते हैं। ओणम का पर्व मुख्यतः नई फसल के आने की ख़ुशी में मनाया जाता है।
ओणम 2023 तिथि और मुहूर्त
इस वर्ष ओणम पर्व का शुभ मुहूर्त 29 अगस्त 2023 में मंगलवार को 02:43:29 से थिरुवोणम नक्षत्रं में प्रारंभ होगा। जो की 23:50:31 पर थिरुवोणम नक्षत्रं में समाप्त होगा।
ओणम पर्व की पूजन विधि
ओणम पर्व के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से शुद्ध होकर भगवान बिष्णु के मंदिर में जाकर उपासना तथा पूजन किया जाता है। इस दिन नाश्ते में पापड़ या केले का सेवन किया जाता है। इस दिन लोग अपने घर पर पकलम या पुष्प कालीन बनाते हैं तथा अपने घर को फूलों से सजाते हैं। इस पर्व पर नौका दौड़, भैसा तथा बैल दौड़ आदि प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है।
क्यों मनाया जाता है ओणम पर्व
ओणम पर्व को मनाने के पीछे कई प्रकार की मान्यताएं हैं। जिनमें से एक यह भी है कि यहां के दानवीर राजा बलि के सम्मान में यह त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान बिष्णु ने एक बार वामन अवतार लेकर राजा बलि के अहंकार को ख़त्म किया था परंतु राजा बलि की वचनबद्धत्ता से प्रसन्न होकर भगवान बिष्णु ने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया था। केरल के लोगों की मान्यता यह भी है कि इस पर्व के पहले दिन राजा बलि पाताल लोक से पृथ्वी पर आते हैं तथा अपनी प्रजा का हालचाल लेते हैं।