काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग : यहां जानें इसका इतिहास, महत्व तथा यात्रा के बारे में
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही भक्तगण मोक्ष के अधिकारी हो जाते हैं। वाराणसी को काशी भी कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में है। यह एक ऐसा पावन स्थान है, जहां पर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यह ज्योतिर्लिंग काले तथा चिकने पत्थर का है। आपको बता दें कि भारतवर्ष में 51 शक्तिपीठ हैं। जिनमें से एक मणिकर्णिका शक्तिपीठ काशी में ही स्थित है। प्राचीन काल से अब तक काशी विश्वनाथ मंदिर का कई बार जीर्णोंद्धार हो चुका है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का प्राचीन इतिहास
आपको बता दें कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। इस पर पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। लोक मान्यता है कि काशी में मृत्यु की स्थिति में पहुंचे हुए व्यक्ति के कान में भगवान शिव तारक मंत्र का उच्चारण करते हैं। जिसके प्रभाव से पापी व्यक्ति भी भवसागर से पार हो जाता है। मान्यता यह भी है कि प्रलयकाल में भगवान शिव काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं अतः उस समय भी इसका अंत नहीं होता है। पौराणिक कथाओं में भी काशी को मोक्षदायिनी कहा गया है।
आपको बता दें कि स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानंद तथा गोस्वामी तुलसी दास जी जैसे महान व्यक्तियों का आगमन भी काशी विश्वनाथ मंदिर में हुआ है। इसके अलावा संत एकनाथ जी ने भी वारकरी संप्रदाय के ग्रंथ “श्री एकनाथ जी भागवत” को इसी स्थान पर पूरा किया था। महारानी अहिल्याबाई भी भगवान शिव की बड़ी भक्त रही हैं। एक बार उनको सपने के माध्यम से भगवान शिव ने दर्शन दिए। जिसके बाद 1780 में महारानी अहिल्या बाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य कराया था। 1853 में इसी मंदिर पर महाराजा रंजीत सिंह ने 1 हजार किलो सोने का कलश लगवाया था। अतः इस मंदिर के शिखर पर स्वर्ण होने के कारण इसको “स्वर्ण मंदिर” भी कहा जाता है।
मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण किसने कराया। इस बात का वर्तमान में कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। लेकिन इतिहास बताता है कि 1194 में मुहम्मद गौरी ने इस मंदिर में लूटपाट की थी ओर इसको नष्ट कर दिया था। इतिहास यह भी बताता है कि शहंशाह अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1585 में कराया था।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथाएं
पहली कथा :
कथा के अनुसार भगवान शिव देवी पार्वती के साथ कैलाश पर निवास करते थे। भगवान शिव की प्रतिष्ठा में कोई बाधा न आ सके इसलिए देवी पार्वती ने भगवान शिव से कोई अच्छा स्थान चुनने के लिए कहा। भगवान शिव को राजा दिवोदास की नगरी काशी अत्यंत प्रिय लगी। भगवान शिव की शांति में कोई बाधा न हो सके इसलिए उनके गण निकुंभ ने काशी नगरी को निर्मनुष्य बना दिया। यह देखकर राजा दिवोदास अत्यंत दुःखी हुए। इसके बाद में राजा ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। जिसके बाद उनको भगवान ब्रह्मा के दर्शन हुए।
राजा दिवोदास ने भगवान ब्रह्मा से उनके दुःख को दूर करने की प्रार्थना की। राजा ने ब्रह्मा जी से कहा कि “देवता देवलोक में ही रहें, पृथ्वी पर मानव रहें।” इसके बाद ब्रह्मा जी के कहने पर भगवान शिव मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी के प्रति अपने प्रेम को न छोड़ सके। इसके बाद भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। इसके उपरांत काशी में महादेव का स्थाई निवास हो गया। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर वाराणसी नगरी की स्थापना की।
दूसरी कथा :
दूसरी कथा के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु में यह चर्चा हुई की हम दोनों में कौन बड़ा है। इसके बाद में उनके पास में एक प्रकाशमान स्तंभ प्रकट हो गया। उसमें से आकाशवाणी हुई की तुममे से जो भी इस स्तंभ का अंतिम छोर ढूंढ लेगा। वही बड़ा माना जाएगा। भगवान ब्रह्मा जी स्तंभ के ऊपरी छोर की ओर चले गए तथा भगवान विष्णु नीचे के छोर की ओर चल पड़े लेकिन दोनों में से कोई भी उस स्तंभ का अंतिम छोर नहीं ढूंढ पाया।
इसके बाद में जब ये दोनों एक दूसरे से मिले तो भगवान विष्णु ने कहा कि वे अंतिम छोर को नहीं ढूंढ सके हैं लेकिन भगवान ब्रह्मा ने असत्य कहा कि वे स्तंभ के अंतिम छोर तक पहुंच गए थे। इसके उपरांत उस प्रकाशमान स्तंभ से भगवान शिव प्रकट हुए ओर उन्होंने भगवान ब्रह्मा से कहा कि आपने असत्य कहा है अतः आपकी पूजा पृथ्वी लोक में नहीं की जायेगी। इसके बाद में उसी स्थान पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
तीसरी कथा :
इस कथा के अनुसार भगवान शिव अपने एक भक्त के सपने में आये ओर उसको आदेश दिया की तुम गंगा जी में स्नान करो। उसके उपरांत तुम्हें दो शिवलिंग मिलेंगे। तुम्हें उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर स्थापित करना है। जिसके उपरांत दिव्य शिवलिंग की स्थापना पूरी हो सकेगी। उस भक्त ने ऐसा ही किया। जिसके बाद में भगवान शिव देवी पार्वती के साथ यहां स्थापित हुए।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विश्वनाथ मंदिर की कथा
वाराणसी का काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारतवर्ष में लोकप्रिय है। यहां के प्रांगण में ही विश्वनाथ मंदिर भी है। यह मंदिर भी पुरातन विश्वनाथ मंदिर के समान ही महत्व रखता है। इस मंदिर के निर्माण की कथा भारत रत्न मदन मोहन मालवीय से जुडी हुई है। वे भगवान शिव के भक्त थे। एक बार उपासना के समय उन्हें भगवान शिव की अत्यंत भव्य प्रतिमा के दर्शन हुए तथा आदेश मिला की आप बाबा विश्वनाथ के मंदिर की स्थापना करें। इसके बाद में मालवीय जी ने मंदिर के निर्माण को शुरू करा दिया लेकिन वे अचानक बीमार हो गए। यह बात जब उद्योगपति युगल किशोर विरला को पता लगी तो उन्होंने इस मंदिर को पूरा कराने का संकल्प लिया तथा मंदिर निर्माण का कार्य पूरा भी कराया। इस मंदिर में आज भी बड़ी संख्या में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए भक्त आते हैं।
विशालाक्षी शक्तिपीठ :
वाराणसी में एक शक्तिपीठ भी स्थापित है। जिसको विशालाक्षी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह काशी के मीरघाट पर स्थित है। 51 शक्तिपीठो में से यह एक है। यहां पर देवी के दाहिनी कान की मणि गिरी थी इसलिए ही इसको मणिकर्णिका शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। दशाश्वमेघ घाट, मणिकर्णिका घाट, हरिश्चंद्र और तुलसीदास काशी के सबसे प्रसिद्ध घाट हैं। अतः यदि आप काशी में दर्शन करने के लिए जाएं तो इन घाटों पर भी अवश्य जाएं।
काशी विश्वनाथ पूजन का समय
काशी विश्वनाथ मंदिर प्रतिदिन तड़के 2.30 बजे खुल जाता है। इस मंदिर में प्रातःकाल से सांय काल तक 5 आरतियां होती हैं। मंदिर में पहली आरती प्रातःकाल 3 बजे होती है। वहीं 10.30 बजे अंतिम आरती होती है। भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर प्रातःकाल 4 बजे खुल जाता है। भक्तगण दिन में किसी भी समय मंदिर में जाकर दर्शन पूजन का लाभ ले सकते हैं। इसके अलावा आप ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा करके अपने दर्शन पूजन का समय पहले से निश्चित करा सकते हैं।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कैसे जाएं
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग जानें के लिए आप बस, ट्रेन, फ्लाइट आदि से आसानी से जा सकते हैं। यहां आपको मंदिर के पास ही एयरपोर्ट, बस स्टैण्ड तथा रेलवे स्टेशन मिल जाते हैं। अतः आपको काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर पहुंचने में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
फ्लाइट से कैसे पहुंचें काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर के सबसे पास में वाराणसी के बाबतपुर में स्थित लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यह मंदिर से मात्र 25 किमी की दूरी पर स्थित है। बैंगलौर, चेन्नई, चंडीगढ़ तथा दिल्ली जैसे शहरों से आपको यहां के लिए सीधी फ्लाइट मिल जाती है।
– ट्रेन से कैसे पहुंचें काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर के सबसे पास वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन, काशी रेलवे स्टेशन तथा वाराणसी जक्शन रेलवे स्टेशन है। यहां से मंदिर मात्र 3 से 4 किमी की दूरी है। इन तीनों में से किसी भी रेलवे स्टेशन पर जाने के लिए आपको दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून तथा मुंबई जैसे शहरों से सीधी ट्रेन मिल जाती है। वाराणसी जक्शन देश के प्रसिद्ध रेलवे स्टेशनों में से एक है। अतः हो सकता है कि आपके शहर से यहां के लिए सीधी रेल सुविधा हो।
– बस से से कैसे पहुंचें काशी विश्वनाथ मंदिर
यदि आप बस से इस मंदिर तक पहुंचना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले वाराणसी शहर पहुंचना होता है। यदि आप उत्तर प्रदेश से हैं तो यहां के कई छोटे बड़े शहरों से वाराणसी के लिए सीधी बस सुविधा उपलब्ध है। यदि आप उत्तर प्रदेश से बाहर के किसी अन्य प्रदेश से संबंध रखते हैं तो आपको सबसे पहले वाराणसी शहर आना होता है। यहां आने के बाद में आप बस या टैक्सी की सहायता से आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास ठहरने की व्यवस्था
काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास आपको कई धर्मशालाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। यहां पर आपको मात्र 200 से 300 रुपये कमरा मिल जाता है। जहां आप आसानी से ठहर सकते हैं। इसके अलावा आपको यहां प्राइवेट होटल भी आसानी से मिल जाते हैं। प्राइवेट होटल में आप 24 घंटों में कभी भी आसानी से जा सकते हैं। यहां आपको मात्र 500 से 600 रुपये में कमरा उपलब्ध हो जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास भोजन की व्यवस्था
काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्ट की ओर से अन्नपूर्णा प्रसादालय की व्यवस्था भक्तों के लिए कराई गई है। यहां आप मुफ्त में भोजन प्राप्त कर सकते हैं। भोजनालय, ढाबे तथा होटल भी आपको मंदिर के आसपास आसानी से मिल जाते हैं। यहां पर आपको मात्र 80 से 120 रुपये में अच्छा भोजन मिल जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास घूमने के स्थान
– काशी नगरी के सभी प्रमुख घाटों पर आप घूम सकते हैं।
– दुर्गा मंदिर में आप दर्शन पूजन कर सकते हैं।
– बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में आप घूम सकते हैं।
– न्यू विश्वनाथ मंदिर के आप दर्शन कर सकते हैं।
– रामनगर किले पर जाकर आप घूमने का आनंद ले सकते हैं।
– सारनाथ स्तूप पर आप घूमने जा सकते हैं।