2023 - Ramrajya Trust

वट सावित्री व्रत 2023 : यहां जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि तथा महत्व के बारे में

वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर प्रतिवर्ष

नृसिंह जयंती 2023 : यहां जानें शुभ तिथि, महत्व तथा पूजन विधि के बारे में

सनातन धर्म में नृसिंह जयंती का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण में भी भगवान विष्णु की उस कथा का

भद्रकाली जयंती 2023 : यहां जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि तथा कथा के बारे में

भद्रकाली जयंती का पर्व इस वर्ष सोमवार 15 मई को है। भद्रकाली को देवी पार्वती का सबसे उग्र तथा शक्तिशाली रूप

चैत्र नवरात्रि 2023 – यहां जानें चैत्र नवरात्रि का शुभ मुहूर्त, कलश स्थापना, नवरात्रि महत्व तथा तिथियां

हिंदू चंद्र कैलेंडर का प्रथम माह चैत्र कहलाता है। इसी कारण इस माह में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि पर्व के समय देवी दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम नौवें दिन भगवान श्रीराम का जन्म दिवस राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि को लेकर काफी असमंजस कि स्थिति है। कुछ लोगों का कहना है कि यह इस वर्ष 21 मार्च से है लेकिन कुछ लोग इसको 22 मार्च से प्रारंभ होना बता रहें हैं। अतः सबसे पहले हम आपको यहां बता रहें हैं कि इस वर्ष चैत्र नवरात्रि किस तिथि से शुरू हो रही है तथा इस वर्ष कलश पूजन का सही मुहूर्त क्या है। चैत्र नवरात्रि की सही तिथि तथा घट स्थापना का शुभ मुहूर्त मुहूर्त द्रिक पंचांग के अनुसार चैत्र घट स्थापना बुधवार 22 मार्च 2023 को होगी। घट स्थापना का मुहूर्त प्रातः काल 6.23 से 7.32 तक रहेगा। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 21 मार्च 2023 को रात्रि 10.25 मिनट पर हो रहा है तथा 22 मार्च 2023 को रात्रि 8.20 मिनट पर प्रतिपदा तिथि का समापन होगा। चैत्र नवरात्रि की तिथियां 1 . 22 मार्च 2023 – मां शैलपुत्री पूजा। 2 . 23 मार्च 2023 – मां ब्रह्मचारिणी पूजा। 3 . 24 मार्च 2023 – मां चंद्रघण्टा पूजा। 4 – 25 मार्च 2023 – मां कुष्माण्डा पूजा। 5 . 26 मार्च 2023

हिंदू नव वर्ष 2023: यहां जानें इसका ऐतिहासिक महत्व तथा वैज्ञानिक कारण

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार से हिंदू नव वर्ष 2080 का प्रारंभ हो रहा है। उत्तर भारत में यह दिन विशेष उत्सव का होता है। यह इस वर्ष 22 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। यह दिन ऐतिहासिक तथा शुभ माना जाता है। आज हम आपको हिंदू नव वर्ष तथा इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में यहां विस्तार से जानकारी उपलब्ध करा रहें हैं। साथ ही हम आपको यहां बताएंगे कि हमारे देश के भिन्न भिन्न प्रदेशों में इसको किस प्रकार से मनाया जाता है। हिंदू नव वर्ष का ऐतिहासिक महत्व हिंदू नव वर्ष मनाने के पीछे कई ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं। इसके अलावा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का यह दिन पौराणिक रूप से भी अपना महत्व रखता है। पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि इसी दिन से भगवान व्रह्मा ने सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था। इसी दिन से नवसंवत्सर का प्रारंभ होता है अतः इस तिथि को “नवसंवत्सर” कहा जाता है। हिंदू नव वर्ष का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। इसी दिन से सम्राट विक्रमादित्य ने राज्य स्थापित किया था। उसी समय से विक्रमी संवत का प्रारंभ हुआ है। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्यों की इसी दिन भगवान श्रीराम का राज्यभिषेक किया गया था। इसी दिन धर्मराज युधिष्ठिर का भी राज्यभिषेक किया गया था। इन सभी से अलग शक्ति तथा भक्ति के पवित्र नवरात्र का पहला दिन भी हिंदू नव वर्ष से प्रारंभ होता है। अलग अलग राज्यों में भारतीय नव वर्ष हमारे देश भारत में अलग अलग राज्यों में नव वर्ष की तिथियां भी भिन्न भिन्न हैं। इसके अलावा नव वर्ष को अलग अलग नामों से मनाया जाता है। आपको बता दें कि महाराष्ट्र में नव वर्ष को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। यह मार्च से अप्रैल माह के बीच मनाया जाता है। पंजाब में नया साल बैशाखी के नाम से मनाया जाता है। इसके अलावा सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार “होला मोहल्ला” नाम से नव वर्ष को मनाया जाता है। वहीं गोवा में नव वर्ष को कोंकणी नाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत के तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में इस दिन को उगादी नाम से मनाया जाता है। कश्मीर प्रदेश में कश्मीरी व्राह्मण इस दिन को नवरेह नाम से मनाते हैं। इसी प्रकार बंगाल में इस दिन को नबा बरसा, असम में बिहू तथा केरल में विशु के नाम से नव वर्ष को मनाया जाता है। चैत्र माह में इस कारण मनाया जाता है हिंदू नव वर्ष कई बार यह प्रश्न उठाया जाता है कि हिंदू नव वर्ष चैत्र माह में ही क्यों मनाया जाता है अन्य किसी माह में क्यों नहीं। असल में चैत्र ही एक ऐसा माह है। जिसमें सभी वृक्ष, लताएं तथा पुष्प पल्लवित होते हैं। इस माह में ही भौरों को पर्याप्त मात्रा में मधु रस मिलता है। दूसरी ओर हिंदू धर्म शास्त्रों की बात करें तो इनमें चंद्रमा का भी प्रमुख स्थान है। जीवन की आधार वनस्पतियों को चंद्रमा से ही सोमरस की प्राप्ति होती है। आपको जानकारी दे दें कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को चंद्रमा की पहली कला (परेवा) का दिन होता है। इसी कारण हमारे महान ऋषियों तथा पूर्वजों ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन को ही नव वर्ष के लिए उपयुक्त माना है। हिंदू नव वर्ष का वैज्ञानिक कारण आपको बता दें कि मार्च माह में ही प्रकृति तथा पृथ्वी का एक चक्र पूर्ण होता है। यह जनवरी में नहीं होता है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का एक चक्र पूर्ण कर लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है तो असल में वही समय नव वर्ष का होता है। इस समय से नए सिरे से प्रकृति में जीवन का प्रारंभ होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च तथा अप्रैल माह के मध्य से चैत्र माह की शुरुआत होती है। 21 मार्च को जब पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है। उस समय रात तथा दिन बराबर होते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि वास्तव में इसी दिन से पृथ्वी का प्राकृतिक नव वर्ष प्रारंभ होता है।

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