करवा चौथ पर्व : इस बार अत्यंत विशेष होगा यह पर्व, यहां जानें शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा तथा पूजन विधि
करवा चौथ का पर्व सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का वर्तन तथा चौथ अर्थात चर्तुथी। इस पर्व पर मिट्टी के वर्तन का विशेष महत्व होता है। विवाहित स्त्रियां इस पर्व का वर्ष भर प्रतीक्षा करती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते तथा प्रेम का प्रतीक है। करवा चौथ व्रत के संबंध में दो कथाएं अत्यंत प्रचलित हैं। जिनको नीचे दिया जा रहा है।
करवा चौथ पर्व की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं में यह तथ्य मिलता है कि करवा चौथ का पर्व देवताओं के समय से चलता आ रहा है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा सामने आती है। कथा के अनुसार एक बार देवताओं तथा दानवों में युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में देवताओं का पक्ष लगातार कमजोर पड़ता जा रहा था। अतः देवता सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास प्रार्थना करने पहुंचें। भगवान ब्रह्मा जी ने देवताओं को कहा की यदि सभी देवताओं की धर्म पत्नियां अपने पति के लिए उपवास रखें तथा ह्रदय से परमेश्वर से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करें तो देवताओं को विजय श्री मिलना निश्चित है। इसके बाद देवताओं की पत्नियों ने कार्तिक माह की चतुर्दशी को भगवान ब्रह्मा जी के कहे अनुसार उपवास किया तथा परमेश्वर से देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। देव पत्नियों की प्रार्थना स्वीकार हुई तथा देवताओं की युद्ध में विजय हुई। यह खबर पाकर सभी देव पत्नियां अत्यंत प्रसन्न हुई तथ्य उन्होंने अपना व्रत खोला। उस समय तक चन्द्रमा भी आकाश में निकल आये थे। अतः मान्यता है कि उस समय से ही करवा चौथ व्रत का प्रारंभ सृष्टि में हुआ।
करवा चौथ व्रत की सुप्रसिद्ध कथा
कथा कहती है की शाकप्रस्थपुर में एक ब्राह्मण की विवाहित पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियम के अनुसार उसको चंद्रोदय के बाद ही भोजन करना था परंतु वह भूख को सह नहीं पाई तथा व्याकुल हो उठी। उसकी व्याकुलता उसके भाइयों से नहीं देखी गई। अतः उन्होंने एक वृक्ष के पीछे आतिशबाजी से कुछ प्रकाश करके चंद्रोदय को दिखा दिया। उसको वास्तविक चंद्रोदय समझ कर वीरवती ने भोजन कर लिया। जिसका परिणाम यह हुआ की वीरवती का पति अदृश्य हो गया। इसके बाद वीरवती ने 12 माह तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा तथा करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या के परिणाम स्वरुप उसका पति वापस उसको मिल गया।
इस प्रकार करें करवा चौथ पर्व का पूजन
करवा चौथ पर्व के पूजन में भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय तथा चंद्रदेव की पूजा करने का विधान है। मान्यता है की जो महिलाएं करवा चौथ पर्व का व्रत रख कर कथा सुनती हैं। वे सदैव सुहागिन रहती हैं तथा उनके घर में सुख, शांति ओर समृद्धि बनी रहती है। करवा चौथ पर्व के पूजन में मिट्टी के करवे का विशेष महत्व है। मिट्टी के करवे से ही इस व्रत का पूजन करने का विधान माना जाता है। इस व्रत को रखने वाली स्त्री भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय तथा चंद्रदेव की प्रतिमाएं रख कर उनका षोडशोपचार करे। इसके बाद एक तांबे या मिट्टी के वर्तन में उड़द की दाल, चावल, सुहाग की वस्तुएं जैसे सिंदूर, चुडिया, रिबन तथा रुपया आदि रखकर किसी सुहागिन स्त्री या अपनी सास को दे।
करवा चौथ पर्व का पूजन विधान
जिन विवाहित स्त्रियों को यह व्रत करना है। वे सुबह नित्य कर्म से निवृत हो जाएं। इसके बाद स्नान, ध्यान तथा संध्या आदि करके आचमन करें ओर संकल्प लें। संकल्प में स्त्री यह कहे कि “मैं अपने सौभाग्य तथा अपने पुत्र-पौत्र आदि ओर निश्चल संपत्ति के लिए करवा चौथ व्रत रख रहीं हूँ।” आपको बता दें कि यह व्रत निराहारी रूप में ही नहीं बल्कि निर्जला व्रत के रूप में अत्यधिक प्रभावी तथा फलदायक माना जाता है। संध्या के समय पुरोहित से महिला व्रत की कथा सुने तथा उन्हें सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा दे। इसके बाद जब रात्रि में चंद्रोदय हो जाये तब चन्द्रमा को छलनी से देखकर उसको अर्ध्य दे तथा आरती उतारे।
चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय महिलाएं “ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषामपतेः नमस्ते रोहिणिकांतं अर्ध्यं मे प्रतिग्रह्यताम।।” का उच्चारण करें। इसके बाद व्रत करने वाली स्त्री अपने पति की आरती उतारे। इसके पश्चात पति के हाथ से जलपान कर अपने व्रत को पूरा करे।
इस बार रात 8.14 के बाद दिखाई पडेगा चांद
मंगलवार को विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य तथा पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखेंगी। परंतु व्रत के पारण करके हेतू इन महिलाओं को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। स्थानीय समय के अनुसार रात्रि 8.14 के बाद ही महिलाएं चंद्र दर्शन कर पाएंगी तथा सुहाग की लंबी आयु के लिए मंगल कामना कर सकेंगी। आपको बता दें की इस बार का करवा चौथ व्रत अत्यंत विशेष है। ज्योतिष के अनुसार देश में 70 वर्ष बाद ऐसा योग बन रहा है जब रोहिणी नक्षत्र तथा मंगल एक साथ होंगे। यह योग इस बार के करवा चौथ व्रत को अत्यधिक मंगलकारी तथा फलदायक बनाएगा।
करवा चौथ चंद्रोदय समय- 13 अक्टूबर 2022, रात 8.19 बजे।
करवा चौथ पूजा समय- 13 अक्टूबर 2022, 06.01 PM – 07.15 PM
गर्भवती स्त्रियां रखें इस बात का ध्यान
यदि गर्भवती स्त्रियां इस व्रत को कर रहीं हैं तो उनको कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।
1 . सरगी के दौरान इस प्रकार के भोजन का सेवन करें। जो जल्दी न पचे। भोजन के बाद एक गिलास दूध अवश्य लें।
2 . यदि कमजोरी अधिक महसूस हो तो नियमित अंतराल पर फलों का जूस लिया जा सकता है।
3 . व्रत के उपरांत सरलता से पचने वाले भोजन को ही करें अत्यधिक गरिष्ठ भोजन न करें।