चातुर्मास : हिंदू व्रत, उपवास तथा महात्म्य का विवेचन ! - Ramrajya Trust

चातुर्मास : हिंदू व्रत, उपवास तथा महात्म्य का विवेचन

सामान्य तौर पर आषाढ़ एकादशी से कार्तिक एकादशी तक का चार माह का समय चातुर्मास कहलाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में इस समय का विशेष विवेचन किया गया है। इसका कारण यह है कि सनातन धर्म के प्रत्येक तथ्य के पीछे वैज्ञानिक सत्य हमेशा रहता है। धर्म ग्रंथों में इस बात का विवरण है कि मानव का एक वर्ष देवी देवताओं के लिए एक दिन तथा रात के बराबर होता है अर्थात जैसे जैसे हम एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करते हैं तो समय का परिणाम बदलता रहता है। यह बात आज के वैज्ञानिक भी भली भांति समझते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों के चन्द्रमा यात्रा से आने पर उनके दिए अनुभवों से यह बात स्वतः सिद्ध हो चुकी है। इससे यह ज्ञात लगता है कि सनातन धर्म का “क्रिया कारण का सिद्धांत” अत्यंत वैज्ञानिक है।

 

देव शयनी तथा देव उठनी एकादशी 

धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि उत्तरायण देवताओ का दिन होता है तथा दक्षिणायन देवताओं कि रात होती है। कर्क संक्रांति के समय उत्तरायण पूर्ण होता है तथा दक्षिणायन का प्रारंभ होता है। कर्क संक्रांति आषाढ़ माह चूंकि आषाढ़ माह में ही आती है इसलिए ही आषाढ़ एकादशी को देव शयनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन देवी देवता निद्रालीन  होते हैं। इसी प्रकार से कार्तिक एकादशी को देवी देवता सोकर उठते हैं इसलिए ही इसको देवउठनी एकादशी कहा जाता है। चातुर्मास को भगवान विष्णु से भी जोड़ कर देखा जाता है। ग्रंथों के अनुसार इसका कारण यह है कि इस समय भगवान ब्रह्मा नव सृष्टि का कार्य करते हैं इसलिए भगवान विष्णु निष्क्रिय अवस्था अर्थात शयन में रहते हाँ। यही कारण है कि चातुर्मास को भगवान विष्णु का शयन काल भी कहा जाता है।

 

चातुर्मास का पौराणिक विवेचन 

हिंदू धर्म में चार माह सावन, भाद्रपद,आश्विन और कार्तिक को विशेष कहा जाता है। इस समय भगवान विष्णु  सहित सभी देवी देवता योगनिद्रा में चले जाते हैं। परिणाम स्वरुप इस समय सृष्टि में तमोगुण का आविर्भाव अधिक हो जाता है। इससे बचने के लिए तथा जीवन में सात्विकता के आविर्भाव के लिए मानव जन को व्रत, उपवास आदि का प्रावधान बताया गया है। यही कारण है कि इन चार महीनों के समय में व्रत उपवास का प्रावधान रखा गया है।

 

जुलाई माह में आने वाले व्रत-उपवास

 

3 जुलाई : विनायक चतुर्थी व्रत।

05 जुलाई : स्कन्द षष्ठी व्रत।

07 जुलाई : श्री दुर्गाष्टमी व्रत।

10 जुलाई : देवशयनी एकादशी, चातुर्मास का प्रारंभ।

11 जुलाई, दिन : सोम प्रदोष व्रत, जया पार्वती व्रत।

18 जुलाई : पहला सावन सोमवार व्रत।

19 जुलाई : पहला मंगला गौरी व्रत।

25 जुलाई : सोम प्रदोष व्रत, दूसरा सावन सोमवार व्रत

26 जुलाई : मासिक शिवरात्रि, दूसरा मंगला गौरी व्रत।

28 जुलाई : श्रावण अमावस्या, स्नान दान की आमवस्या।

29 जुलाई : श्रावण मास का शुक्ल पक्षारंभ।

 

व्रत उपवास का वैज्ञानिक महत्त्व

आयुर्वेद के अनुसार व्रत या उपवास आपकी जठराग्नि यानि पाचन ऊर्जा को जाग्रत करते हैं। जब आप व्रत में होते हैं तथा जठराग्नि में वृद्धि होती है तो वह आपके शरीर की अशुद्धियों को जला देती है। अतः व्रत या उपवास हमारे शरीर की शुद्धि के लिए एक प्रभावी चिकित्सा है। चूंकि शरीर तथा मन के बीच में गहरा संबंध है अतः जब आपका शरीर जब शुद्ध हो जाता है तो आपका मन भी तनाव रहित तथा शांत हो जाता है।

व्रत उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व

आध्यात्मिक दर्शन में व्रत तथा उपवास के महत्त्व पर गहनता से खोज हुई है। हमारे महान पूर्वजो, योगियों तथा ऋषिओं ने पाया कि व्रत-उपवास से आपके मन पर अत्यंत सात्विक प्रभाव पड़ता है। उसकी चंचलता दूर होती है तथा एकाग्रता का विकास भी होता है। अलग अलग तिथियों के दिन आपके मन को अलग अलग तरह से प्रभावित करते हैं अतः इसी को ध्यान में रखकर अलग अलग तिथियों में व्रत का विधान बनाया गया है।

व्रत-उपवास के प्रकार

राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है। हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है।

व्रतों के प्रकार तो मूलत तीन ही हैं – 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य।

 

1 – नित्य व्रत

इन व्रतों में ईश्वर भक्ति तथा मानव के आचरण पर बल दिया गया है। जैसे झूठ न बोलना, क्रोध न करना, परनिंदा न करना आदि।

2 – नैमित्तिक व्रत

किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत कहलाते हैं।

3 – काम्य व्रत

पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि आदि जैसे किसी कार्य के लिए किये जाने वाले व्रत काम्य व्रत की श्रेणी में आते हैं।

 

इस प्रकार से जो बातें हमारे सामने स्पष्ट होती हैं। उनमें से एक यह है कि सनातन धर्म के अंतर्गत जो भी पर्व, त्यौहार तथा व्रत-उपवास आदि आते हैं। उनके पीछे वैज्ञानिक सत्य का आधार है। दूसरी बात व्रत-उपवास से सिर्फ आराध्य की कृपा की प्राप्ति नहीं होती बल्कि यह हमारे शरीर तथा मन कि शुद्धि के लिए एक पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है। हम आशा करते हैं कि आपको चातुर्मास का महात्म्य तथा व्रत-उपवास कि उपयोगिता दोनों ही अच्छे से आत्मसात हो चुके होंगे।

 

chaturmass

Post navigation

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *